परिचै : वेब-पत्रिका कृत्या री सम्पादिका रति सक्सेना रो जलम 8 जनवरी, 1954 नै उदयपुर राजस्थान में हुयो। संस्कृत अर हिंदी साहित्य में एम.ए., बी.एड. अर अथर्ववेदीय पदार्थ योजना में पी.एचडी.। आप हिन्दी, अंग्रेज़ी, मलयालम में लगोलग लिखै अर आयोजन-अनुवाद पेटै ई खूब चावा मानीजै। चावी काव्य-पोथ्यां- माया महाठगिनी, अजन्मी कविता की कोख से जन्मी कविता, और सपने देखता समुद्र, एक खिड़की आठ सलाखें। विविध विधावां में केई पोथ्यां छप्योड़ी अर मलयालम सूं हिंदी अनुवाद पेटै साहित्य अकादेमी सूं पुरस्कृत। अबार आप केरल मांय बसै। ई-मेल : saxena.rati@gmail.com
आंसुवां
री हेमाणी
एक आंसु
उण खातर
जिको आपां रो नीं बण सक्यो
एक आंसु
आपां रो बण जावण रो
दिखावो करणियै खातर
एक आंसु
खुद सूं खुद री
यारी करावणियै पेटै
आंसुवां री हेमाणी खूटगी !
००००
भलै घरां री छोरियां
भलै घरां री छोरियां
किन्नां कोनी उड़ाया करै
किन्नां में रंग हुवै
रंगां में इच्छावां हुवै
इच्छावां डस लेवै
किन्नां कागदी हुवै
कागद फाट जावै
डील अपवित्र बण जावै
किन्नां में मंझो हुवै
मंझो छूट जावै
मारग भटका देवै मंझो
किन्नां में उडाण हुवै
बादळां सूं टकराव हुवै
नसां तड़का देवै
जणा ई तो
भलै घरां री छोरियां
किन्नां कोनी उडाया करै।
००००
कांई थूं म्हारै सूं
बात्यां करसी
पैला दांई
खुद री कबर माथै
धरियै भाठै नै उतार’र
हाडकां माथै चामड़ी चढा’र
थूं म्हारै सूं बात्यां करसी
पैला दांई
उणा पूछियो-
“कियां?”
म्हैं कैयो-
“चामड़ी री बात्यां करै
हाडका गाळ’र
बणगी चूरण
जीभ झड़गी
आवाज आभै में उडगी
"बात्यां तो कर
स्सौ कीं आय जावैला
चामड़ी, हाडियां, जीभ
अर इण पछै
आवाज।”
म्हैं रूंखां री जड़ सूं जीभ बणाई
पनड़ां सूं दांत
घाटियां में घूमती आवाज नै झाली
सागर री छोळां सूं डील बणायो
लेवो, अबै म्हैं तियार हूं
बंतळ करण खातर....
अरे अबै थूं कठै गयो?
००००
म्हैं सोचूं
म्हैं सोचूं
बां सगळा बाबत
जिका म्हारी मुसाफरी रा जोड़ीदार हुय सकता हा
फेर मुसाफरी कठै सूं रैवती मुसाफरी
कट जावतो बगत- लड़ण अर समझावण में
कांई पछै ई म्हैं टोपो-टोपो पीय सकती ही मुसाफरी नै?
००००
ओळूं
बारी बंद कर दी
आडो ई जड़ दियो
झरोखां रै कानां मांय
लगा दिया जरू डाटा
कोई तीणो कोनी छोड़ियो
जिको रैयग्यो हुवै खुल्लो
फेर ई ठाह नीं कद अर कियां
ओळूं सूं भरीज्यो पूरो घर।
००००
००००
आडा बजावतां सुपनां
इन्नै थोड़ै दिनां सूं सुपनां
कोनी बजायो आडो
बाजी कोनी म्हारै फोन री घंटी
सुपनां नै सायत
नंबरां री ठाह कोनी
सोच्यो कै ई-मेल भेज देवूं
हालचाल तो पूछ लेवूं सुपनां रो
ठाह नीं कठै गुमगी आई डी
सुपनां भेळै
कियां बजावतो कोई आडो?
म्हारै पाखती आडो जिको नीं हो
ठाह ई कोनी पड़ी कद अर कठै
म्हारै घर रो आडो ई गुमग्यो।
००००
उण रा सुपनां
उण नै कैयो हो-
सुपनां देखै
बो सगळी खेचळ करी
सुपनां जोवण री
हरेक दाण दिख्यो उण
घणा सारा चावळां माथै
मछली रा कटपीस
उण नै कैयो हो-
सुपनां लांठा हुवणा चाइजै
उण रै सुपनां में
चावळां रो ढिग्गो ऊंचो हुवतो गयो
अर मछली रा कटपीस बड़ा
उण नै फेर कैयो हो-
“जिसा सुपना देखसी, उणी जोगो बणसी।”
उण सांम्ही सवाल ऊभग्यो-
चावळ बणै का मछली रो कटपीस?
बो विचार करियो
चावळ सूं भूख जासी कुटुंब री
मछली नै तो कोई पण फांस ई सकै कदैई
बो सुपनां नै बिसराय नै
लागग्यो चावळां रै जुगाड़ में।
००००
अनुवाद : नीरज दइया
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