23 जून, 2015

लालित्य ललित



प्रेम
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घणा दिनां सूं जोवूं इण नै
लाघण रो नांव ई नीं लेवै
प्रेम मांय सगळा
का सगळा मांय प्रेम
ठाह नीं किण डाळ बिराज्यो
कद उतरैला हेठै
मिनख रै अंतस
आज इण सबद रो बरतणो
साव कमती हुयग्यो
स्यात लोग
जापतो राखण लागग्या
आज सूं पैला तो
कोनी हा इत्ता कंजूस
स्यात लागग्या
निनाणूं रै चक्कर मांय
संचै प्रेम नै
दिलां मांय
सांसां मांय
जूण मांय
रिस्ता मांय सगा भेळै
कांई चाइजै भळै म्हनै
कीं कोनी चाइजै
सुणो ! म्हैं प्रेम मांय पड़ग्यो
म्हनै ठाह है
कद सूं हो प्रेम मांय
तद सूं जद समझ्यो
इण सबद नै
मैसूस करियो तद सूं
ठाह लागगी आज
जद तांई आ दुनिया है
तद तांई जीवसी प्रेम
जे मिटसी स्सौ कीं एक दिन
पण तो ई किताबां रै पानां मांय
सदा हरियो रैसी प्रेम
तकनीक रै जरियै रच्यो-बस्यो रैसी
गीतां मांय, गजलां मांय सदा खातर
अरे प्रेम थारी आंख्यां रै मारग
साव ओळै म्हारै काळजै बडग्यो
म्हारो बणग्यो सोगन खावूं
स्यात प्रेम म्हनै मिलग्यो
का म्हारै तांई पूगग्यो प्रेम
सुणो ! अबै आपां प्रेम मांय हां
इण ढाळै रै प्रेम मांय
जठै फगत अर फगत प्रेम है
प्रेम नै टाळियां कीं कोनी।
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कुण चतुर सुजान
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सगळा छिटकायग्या
मूंढो मोड लियो
पैइसां री यारी
कित्ता’क दिनां री !
आ प्रीत गरज बावळी
कित्ता’क दिन री...
कुण जाणै !
पण म्हैं जाणूं
बगत कमती है
थे गैला बणावो किणी नै
ओ भरम है थांरो
अर दूजो जिण नै बावळो समझो थे
बो खुद री गैलायां माथै
मुळकै चुपचाप।
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थारी ओळूं
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अबै कोनी आवै म्हनै
कारण कै अंतस बसै म्हारै
एक लखाव दांई
एक खुसबू दांई
कांई हो
कांई कोनी
ओ साच है
स्याही दांई
लिख्योड़ै हरफ दांई
ओळूं
घणीवळा आय जावै
छोळां दांई
आज ई भेळै गुजारियो बगत
पळकण लाग्यो मन-पाटी माथै
थूं बांच लियो
इण नै किणी लखाव दांई
म्हारै दिमाग मांय
उतरी थूं कविता दांई
एक गजल रै ढाळै
एक साच हुवतै सपनै दांई
जिको आपां भेळै जोयो हो
चाणचकै छोळां उठी
म्हारै दिमाग मांय
थांनै पाय’र
साव निरवाळो हुयग्यो म्हैं
कीं नीं चाइजै अबै
म्हैं राजा भोज
थारै मिल्यां पछै
सबद ई हुयग्या अमीर
सरोकार साकार हुयग्या
उडीक पूरी हुयगी
कसक पीड मांय बदळी
यादां रो झरोखो
आपरी कहणी सुणावतो रैयो
मारग कटग्यो होळै होळै।
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अनुवाद- नीरज दइया
कवि परिचै : लालित्य ललित रो असली नांव डॉ. ललित किशोर मंडोरा। आपरो जलम 27 जनवरी, 1970 नै दिल्ली मांय हुयो। आपरा कविता संग्रै- गांव का खत शहर के नाम, दीवार पर टंगी तस्वीरें, यानी जीना सीख लिया, तलाशते लोग, इंतजार करता घर, चूल्हा उदास है अर समझदार किसिम के लोग चरचा मांय रैया। कविता रै साथै-साथै नवसाक्षरां खातर आप घणो लिख्यो, केई पोथ्यां छप्योड़ी अर बीजी भाषावां मांय अनुवाद ई प्रकाशित। अबार आप नेशनल बुक ट्रस्ट इंडिया रै सहायक संपादक रूप कारज संभाळै। ई-ठिकाणो : lalitmandora@gmail.com     
 



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