23 जून, 2015

सुधीर सक्सेना


हिंदी साहित्य मांय सुधीर सक्सेना चावै-ठावै कवि रै अलावा संपादक अर लूंठै  अनुवाद रूप ई ओळखीजै। आपरो जलम लखनऊ मांय 30 सितंबर 1955 नै हुयो। चावी काव्य-पोथ्यां- बहुत दिनों के बाद (1990), काल को भी नहीं पता (1997), समरकंद में बाबर (1997),  ईश्वर हाँ, नहीं... तो (2013) आद। रूसी, पोलिश अर ब्राजीली भाषा रै घणा कवियां री कवितावां रो आप हिंदी अनुवाद करियो। रूस रै चावै 'पूश्किन पुरस्कार' रै अलावा कविता खातर  'वागीश्वरी पुरस्कार' अर 'सोमदत्त पुरस्कार' मिल्योड़ा। कवितावां रा देस-विदेस री केई भाषावां में अनुवाद हुयोड़ा। आं दिनां “दुनिया इन दिनों” (पाक्षिक) पत्रिका रा प्रधान संपादक । ई-ठिकाणो :  sudhirsaxena54@gmail.com  




प्रेम
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संसार मांय जुगां-जुगां पैली
पैल-पोत हो फगत प्रेम
संसार रै सेवट मांय
फगत हुवैला प्रेम

दोनूं कांठां बिचाळै
थिर ऊभो
निजर आवूंला म्हैं
000
सरत
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मोमाख्यां रै छत्तै मांय
हाथ घाल’र
अर जान जोखम मांय न्हाख’र
लायो हूं
घणो सारो सैत

पण एक सरत है
सैत रै बदळै मांय
थांनै देवणो पड़ेला
थारो सगळो लूण।
००००

थांरी डोळी माथै
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आभै मांय
उडूंला एक दिन

किन्नो बण’र
कटण खातर।

कटूंला
अर आय ढूकसूं
आखै जमानै नै अंगूठो बतावतो
थारी बाखळ री डोळी माथै।   
0000

लूण
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बजार मांय आपां रै देखतां देखतां
गायब हुयग्या है लूण रा ढगळिया
अर बां री जागा परसगी है-
पिस्यै लूण री थेलियां,
देखण मांय अबै लूण लूण कोनी लखावै
लखावै जाणै हुवै गाभा धोवण आळो पोडर बेमिसाल

सरकारी इस्तहारां नै देखां
तो बठै ई हाजर कोनी लूण
मोटै सहरां अर राजधानियां री ई बात कोनी
आं दिनां तो हरेक ठौड़
जे बारा पोइंट मांय लिख्योड़ो हुवै “नमक”
तो बड़ा-बड़ा आखरा मांय
मार्का दाई सदा भेळै टंगयोड़ो दिसै आयोडीन ।
0000

यूरेका
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जे पाणी मांय छपाक सूं
नीं कूदतो आर्कीमिडीज
तो कुण कूकतो
एथेन्स री सड़कां माथै-
यूरेका...यूरेका....

लोग साचाणी बिसरग्या हुवतां
आर्कीमिडीज नै

गीरबो हुवणो चाइजै
हरेक आर्कीमिडीज माथै
जिण सोध्यो अर लाधग्यो

नफरत करो उण सूं
जिका मार न्हाख्यो
खुद रै मांयलै आर्कीमिडीज नै
अर तरस खावो उण माथै
जिको बंद कमरै मांय का सडकां माथै
कदैई आपो बिसराय’र नीं बोल्यो-
यूरेका... यूरेका....!  
000 
 अनुवाद : नीरज दइया  



रति सक्सेना


परिचै : वेब-पत्रिका कृत्या री सम्पादिका रति सक्सेना रो जलम 8 जनवरी, 1954 नै उदयपुर राजस्थान में हुयो। संस्कृत अर हिंदी साहित्य में एम.ए., बी.एड. अर अथर्ववेदीय पदार्थ योजना में पी.एचडी.। आप हिन्दी, अंग्रेज़ी, मलयालम में लगोलग लिखै अर आयोजन-अनुवाद पेटै ई खूब चावा मानीजै। चावी काव्य-पोथ्यां- माया महाठगिनी, अजन्मी कविता की कोख से जन्मी कविता, और सपने देखता समुद्र, एक खिड़की आठ सलाखें। विविध विधावां में केई पोथ्यां छप्योड़ी अर मलयालम सूं हिंदी अनुवाद पेटै साहित्य अकादेमी सूं पुरस्कृत। अबार आप केरल मांय बसै। ई-मेल : saxena.rati@gmail.com 


आंसुवां री हेमाणी
एक आंसु
उण खातर
जिको आपां रो नीं बण सक्यो

एक आंसु
आपां रो बण जावण रो
दिखावो करणियै खातर

एक आंसु
खुद सूं खुद री
यारी करावणियै पेटै

आंसुवां री हेमाणी खूटगी !
००००

भलै घरां री छोरियां
भलै घरां री छोरियां
किन्नां कोनी उड़ाया करै
किन्नां में रंग हुवै
रंगां में इच्छावां हुवै
इच्छावां डस लेवै

किन्नां कागदी हुवै
कागद फाट जावै
डील अपवित्र बण जावै

किन्नां में मंझो हुवै
मंझो छूट जावै
मारग भटका देवै मंझो

किन्नां में उडाण हुवै
बादळां सूं टकराव हुवै
नसां तड़का देवै

जणा ई तो
भलै घरां री छोरियां
किन्नां कोनी उडाया करै।
००००

कांई थूं म्हारै सूं बात्यां करसी
पैला दांई
खुद री कबर माथै
धरियै भाठै नै उतार’र
हाडकां माथै चामड़ी चढा’र
थूं म्हारै सूं बात्यां करसी
पैला दांई

उणा पूछियो-
“कियां?”
म्हैं कैयो-
“चामड़ी री बात्यां करै
हाडका गाळ’र
बणगी चूरण
जीभ झड़गी
आवाज आभै में उडगी

"बात्यां तो कर
स्सौ कीं आय जावैला
चामड़ी, हाडियां, जीभ
अर इण पछै
आवाज।”

म्हैं रूंखां री जड़ सूं जीभ बणाई
पनड़ां सूं दांत
घाटियां में घूमती आवाज नै झाली
सागर री छोळां सूं डील बणायो
लेवो, अबै म्हैं तियार हूं
बंतळ करण खातर....

अरे अबै थूं कठै गयो?
००००

म्हैं सोचूं
म्हैं सोचूं
बां सगळा बाबत
जिका म्हारी मुसाफरी रा जोड़ीदार हुय सकता हा
फेर मुसाफरी कठै सूं रैवती मुसाफरी
कट जावतो बगत- लड़ण अर समझावण में
कांई पछै ई म्हैं टोपो-टोपो पीय सकती ही मुसाफरी नै?
००००

ओळूं
बारी बंद कर दी
आडो ई जड़ दियो
झरोखां रै कानां मांय
लगा दिया जरू डाटा

कोई तीणो कोनी छोड़ियो
जिको रैयग्यो हुवै खुल्लो
फेर ई ठाह नीं कद अर कियां
ओळूं सूं भरीज्यो पूरो घर।
००००

आडा बजावतां सुपनां
इन्नै थोड़ै दिनां सूं सुपनां
कोनी बजायो आडो
बाजी कोनी म्हारै फोन री घंटी
सुपनां नै सायत
नंबरां री ठाह कोनी
सोच्यो कै ई-मेल भेज देवूं
हालचाल तो पूछ लेवूं सुपनां रो
ठाह नीं कठै गुमगी आई डी
सुपनां भेळै
कियां बजावतो कोई आडो?
म्हारै पाखती आडो जिको नीं हो
ठाह ई कोनी पड़ी कद अर कठै
म्हारै घर रो आडो ई गुमग्यो।
००००

उण रा सुपनां
उण नै कैयो हो-
सुपनां देखै
बो सगळी खेचळ करी
सुपनां जोवण री
हरेक दाण दिख्यो उण
घणा सारा चावळां माथै
मछली रा कटपीस

उण नै कैयो हो-
सुपनां लांठा हुवणा चाइजै
उण रै सुपनां में
चावळां रो ढिग्गो ऊंचो हुवतो गयो
अर मछली रा कटपीस बड़ा

उण नै फेर कैयो हो-
“जिसा सुपना देखसी, उणी जोगो बणसी।”
उण सांम्ही सवाल ऊभग्यो-
चावळ बणै का मछली रो कटपीस?

बो विचार करियो
चावळ सूं भूख जासी कुटुंब री
मछली नै तो कोई पण फांस ई सकै कदैई

बो सुपनां नै बिसराय नै
लागग्यो चावळां रै जुगाड़ में।
००००

अनुवाद : नीरज दइया