कहाणी

कहाणी : मरीन ड्राइव री खाली बोतल
मूल : रजनी मोरवाल,  अनुवाद : डॉ. नीरज दइया
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परिचै : रजनी मोरवाल रो जलम आबूरोड़ राजस्थान मांय एक अगस्त नै हुयो। हिंदी री गीतकार अर कहाणीकार रूप सांवठी ओळख। आपरी चर्चित पोथ्यांसेमल के गाँव से, धूप उतर आई अर अँजुरी भर प्रीति। आपनै केई मान-सम्मान, पुरस्कार मिल्योड़ा। -मेल : rajani_morwal@yahoo.com 
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रजनी मोरवाल
आज छोळां कीं बेसी ई उछळै ही, सिखा नै घबराहट सी हुवण लागी। एक तो साम्हीं ऊंडो पाणी अर ऊपर सूं मरीन ड्राइव रै कांठै ‘क्वीनस नेकलस’ नांव सूं चावी सीमेंट री गोळ-आंटावाळी इण ठौड़ बैठणो। दोनूं ई बातां उण नै डरावण खातर घणी ही, ठाह नीं क्यूं सिखा नै टाबरपणै सूं ई’ज पाणी अर ऊंची जागावां रो भौ बैठ्योड़ो हो। डरती-डरती बां नैड़ै बैठै खुद रै घणी साम्हीं देखण लागी, पण बो तो छोळां री आवा-जावी माथै आंख्यां टिकायां खुद री दुनियां मांय ई गुम्योड़ो हो।
आ ठौड़ प्रसांत रै घणी दाय आवती, बो चाणचकै सिखा साम्हीं जोवतो मुळकण लाग्यो अर इण ढाळै नैड़ै आयां बिना कीं कैयां-सुण्यां निरायंत मिली। प्रसांत नै बिना कीं कैयां ई बो उण रै मन नै समझ जावै। मोटी कंपनी मांय सिविल इंजिनियर रो औहदो संभाळणियो प्रसांत घणो ठीमर सुभाव वाळो मिनख हो। अचाणचकै उण सवाल करियो कै छोळां री ऊंचाई कित्ती’क हुवैला सिखा? फेर सिखा कीं कैवै उण सूं पैलां ई खुद उथळो ई देय देवै- करीब छव फुट ऊंची तो हुवैला ई’ज, क्यूं सिखा ठीक कैय रैयो हूं नीं। सिखा हां अर ना रै बिचाळै उळझ’र रैय जावती। उण नै इण हिसाब रो गणित कठै सूं समझ आवतो। बा तो पूरी जूण रिस्तां रो गणित पण समझ नीं सकी ही। सदीव दिल सूं जीवती आई सगळा रिस्ता, बी. ए. रै छेहलै बरस किणी एक दिन प्रसांत री मा नै बा दाय आयगी। सिखा रा जीसा पण प्रसांत अर उण री नौकरी सूं प्रभावित हुयग्या हा सो एक सुभ लगन मांय बां रो ब्यांव हुयग्यो अर सिखा आपरै सासरै मुम्बई आयगी।
फेर तो बस घर-परिवार रो सगळो काम, सासू-सुसरै री सेवा अर टाबर-टाबरां री भणाई-लिखाई। कद बगत रै पांख्यां लागी ठाह ई नीं पड़्यो। खुद री ऊमर रा कित्ता बरस ओछा हुयग्या कीं ठाह ई नीं पड़्यो पण अबै उण नै कमजोरी रै लखाव सूं लागै कै घर-परिवार रिस्तैदारी नै निभावतां-निभावतां बा खुदोखुद सूं कित्ती अळघी निकळगी। ब्यांव सूं पैलां उण री कहाणियां हरेक पत्र-पत्रिकावां मांय प्रकासित हुवती ही। पण स्सौ कीं जाणै बठैई थमग्यो। बस बरस अर बरस पार करती गई बगत रै साथै-साथै। उण रो लेखन तो घर री अलमारी मांय ई जाणै बंद हुय’र रैयग्यो। 
छोळा रै रोळां सूं जाणै सिखा रो ध्यान तूटियो, साम्हीं जोयो तो एक प्लास्टिक री खाली बोतल छोळा भेळै बैवती आवै ही, रात रै अंधारै मांय अळघै सूं देख्यां लखायो कै कोई मिनख नसड़ी ऊंची कर-कर’र सांस लैवै पण पाणी री थापां उण नै घिर-घिर दाब्यां जावै ही। कीं बैयां पछै बा बोतल सिखा री निजरां सूं अदीठ हुयगी। सिखा बैचैन-सी हुयगी अर उण री आंख्यां छोळां मांय कीं जोवण लागी। सांसां खाती-खाती लागण लागी। उणी बगत बा बोतल कांठां रै भाठां बिचाळै पूग’र अटकगी। सिखा नै जाणै चैन री सांस ली, उण नै इयां लाग्यो जाणै एक जीवण बचग्यो हुवै। छोळा ऐकली ई पाछी गई परी।
सिखा मन ई मन मांय कीं कैयो। मिनख री जूण ई इण गैरै समदर दांई हुवणी चाइजै। जिको कीं खुद रो नीं है का इयां कैय दां कै फॉरन पार्टिकल है उण नै खुद मांय कदैई रळण कोनी देवै। किणी न किणी जुग मांय, सदी मांय का किणी न किणी दिन पक्कायत ई बारै लाय’र कांठै पूगाय पटकै। फेर तन साफ तो मन ई निरमळ। 
आजकाळै सिखा अर प्रसांत सिंझ्या जीम्यां पछै अठै मरीन ड्राइव माथै आय’र बैठ जावै अर दोनूं जणा घंटां तांई बैठा-बैठा बगत रा पोयोड़ा मोती संभाळै अर फेरी जूनी यादां सूं कोई बात आय’र बां बिचाळै अबोली पसर जावै। बै बिना कीं कैयां-सुण्यां भेळै रैयोड़ा तेईस बरसां नै मैसूस करता रैय जावै। आज चौफेर कीं चिपचिपाट बेसी लखावै ही। बायरै रै भेळै मोगरै री खसबूं री लपटां सिखा री नास्यां मांय भरीज जावै, बा जोर जोर सूं सांस लेवण लागै जाणै खसबू नै खुद रै रूं-रूं मांय उतरणी चावै। उण नै मोगरै री खसबू घणी दाय ही। प्रसांत आंख्यां आंख्यां मांय कीं सिखा नै बूझै। सिखा कैवै- अबै? इण उमर मांय? प्रसांत छेड़ै कै क्यूं ब्यांव पछै तो दफ्तर सूं आवतो सदीव थारै खातर वेणी लाया करतो हो अर थूं ई कित्तै चाव सूं उण नै जूड़ै मांय सजाया करती ही। हां, पण बा जद री बात ही… अर अबै कांई चोखी लागसूं? सिखा संकती-संकती बोली। प्रसांत वेणी बेचणआळी छोरी नै बुलाय’र वेणी मोल लेवै। वेणी बेचणआळी छोरी री भायली ई कैवै- बाबूजी! एक वेणी म्हारी ई लेय लो हाल बोवणी ई कोनी हुई। प्रसांत उण सूं ई वेणी मोल लेय लेवै। दोनूं छोरियां राजी राजी हंसती-मुळकती जावै परी। हियै निरांयत लियां प्रसांत बां जावती छोरियां नै देखै। उण री आ ई गणित सिखा रै दिल साम्हीं जीत जावै।
सिखा रै जूड़ै री ठौड़ अबै एक पोनीटेल लैहराया करती ही। प्रसांत उणी मांय फसियोड़ी पिन माथै वेणी लगाय देवै अर सिखा रो मूंडो खुद कानी घुमा’र कैवै- देख म्हारै साम्हीं देख, कीं तो कोनी बदळियो देख। बा ठीक उणी ढाळै सरमावै जिण ढाळै प्रसांत जद पैली बार देख्यो तद सरमाइजी। साचाणी कीं ई कोनी बदळियो। हां, कीं घोळा पक्कायत चिलकण लागग्या हा अर अबै एक वेणी उण रै केसां मांय लहरावै ही। दूजी वेणी नै हाथां मांय लियां प्रसांत घड़ी घड़ी उण नै सूंघै हो। जियां ब्यांव पछै रै दिनां रै उण हरखीजतै समियै नै इण वेणी री खसबूं मांय जोवतां हुवै। 
फेर चाय बेचणियै टाबर री अरज माथै प्रसांत दोय कप चाय लेवै। एक कप सिखा नै पकड़ावतो पूछै- अच्छिया सिखा जिका रै टाबर कोनी हुवै बै आपरी जूण कियां जीवतां हुसी? सिखा सोच मांय ऊंडै उतरगी, झट करतो कोई सावळ पड़ूत्तर उण नै कोनी सूझ्यो। पड़ूत्तर मांय बा फगत इत्तो ई कैय सकी कै बां री जूण रो आधार की बीजो हुवतो हुवैला, बै लोग फगत खुद सारू जीवता हुवैला का कदैई दुख अर कदैई तनाव सूं घिरिया रैवता हुवैला। का फेर बै खुदोखुद मांय समटीज’र रैय जावता हुवैला। सिखा जाणै कोई घोटियोड़ो उथळो देय दियो जिको उणां कीं दिनां पैली बांझड़ा घणी-लुगायां बाबत प्रकासित लेख मांय बांच्या हो।
प्रसांत लांबी सांस खुद मांय खींची अर उत्ती ई गैराई सूं उण नै छोड़ी, जाणै उणा रै कानां सिखा रो पड़ूत्तर पूग्यो ई नीं हुवै। सिखा जाणगी कै टाबरां सूं आंतरो प्रसांत नै मन मांय चुंटिया जावै। दोनूं टाबर आप-आप रै लुगाई-टाबरां मांय गुमग्या हा। रोज फोन माथै आपरै मा-बाप रा साता जाणै। बगतसर दवाई लेवण री भोळावण रोजीना देवै। टाबरां अर ब्यांव र्री बरसगांठ माथै दोनूं छोरा आपरै लुगाई-टाबरां समेत विडियो कानफ्रेंस रै मारफत बंतळ करै। दोनूं छोरां नै माइतां री फिकर तो हुवती ई हुवैला पण नौकरी अर तरक्की री दौड़ मांय बै घर सूं अळघा परदेसां तांई पूगग्या। 
सिखा नै आपरै छोरां रै बाळपणै रा दिन चेतै आया। कित्ती मेहनत करी ही बां घणी-लुगाई टाबरां रै अगम नै इण मुकाम पूगावण मांय, आज जद लारलै बगत री हर आवै तद अणथाग सुख लखावै। आ ई तो चावना ही बां दोनूंवां री जीवण सूं। घर-परिवार, टाबर अर अपणायत कित्तो कीं मिळियो इण जूण मांय फेर ई आं दिनां जाणै कोई डबको सो बां नै चौफेर लखावै। सिखा आपरै घर-घणी साम्हीं देखै- प्रसांत रै उणियारै कित्ती निरमळता है पण ठाह नीं किण सोचा-विचारी मांय बो हाल तांई अळझ्योड़ो हो। आखी उमर प्रसांत कोसीस करतो रैयो कै सिखा नै दर ई तकलीफ नीं हुवै। बिना किणी सरत आखी जूण उण माथै नेह री बिरखा करियां गयो पण सिखा री दीठ फेर उण प्लास्टिक री खाली बोतल सूं जाय अळूझगी जिकी अबै छोळां भेळै आय’र कांठै रै भाखरां बिचाळै अटक्योड़ी ही। 
सिखा रै अंतस बरसां सूं लुक्योड़ी जूनी लेखिका जाणै एकर भळै अलमारी सूं बारै आय’र सबदां नै उणियारां देवण लागी, बा सोच मांय डूबगी कै सेवट टाबर ई तो डील मांय फोरेन पार्टिकल दांई हुवै। लाख कोसीस करियां ई बां नै ना तो डील अर ना कूख ई मांय सदा खातर संभाळ’र राख सकै। फेर ओ मोह किण ढाळै रो है? ओ दुख अर हुबाड़ किण खातर? उण रा हाथ प्रसांत रै हाथां राख्योड़ी वेणी नै पंपोळण लाग्या। जाणै बा ई प्रसांत भेळै फूलां री खसबू नै उण साथै उणी ढाळै मैसूस करणी चावती हुवै। बा नवी बिंदणी ही तद इयां ई करिया करती ही। 
बै दोनूं उण समियै उण ऊंडै समदर दांई लखावै हा, जिको खुद मांय कीं कोनी राखै। जिको कीं उण रो नीं बो उण नै कांठै पूगाय’र जाणै धर देवै। बै दोनूं एक-दूजै रो हाथ पकड़ियां उपाळा चालता-चालता घर कानी टुरग्या। बिन्नै मरीन ड्राइव री छोळां अबै पैलां दांई उछाळा-कूदी कोनी करै ही। ठाह नीं क्यूं सिखा रै अंतस इण घड़ी पाणी सूं भौ री ठौड़ कीं नेह उपज्यो। बा प्रसांत रो हाथ पकड़ियां किणी गजल री ओळी गुणगुणावण लागी। “तूं नहीं तो जिंदगी में और क्या रह जाएगा, दूर तक तन्हाइयों का सिलसिला रह जाएगा।“
प्रसांत जाणग्यो कै सिखा अबै घर पूग’र अलमारी सूं जूनी डायरी काढैला। जिण रै पानां माथै एकर भळै नवी-नवी कहाणियां जलमैला। बो गुणगुणावती इण नवी सिखा भेळै आपरी जूण मांय भळै गुम जावणो चावतो हो। मरीन ड्राइव री छोळां मांय अचाणचकै कठैई सूं बैवती आई एक प्लास्टिक री खाली बोतल प्रसांत अर सिखा नै जाणै जूण रो कोई ऊंडो पाठ पढायगी, जूण जिकी अबै फगत अर फगत बां दोनूंवां री खुद री ही।

(आभार : दैनिक युगपक्ष, बीकानेर)

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