परिचै : जलम- 29 नवम्बर, 1968
जयपुर में। कविता अर आलोचना में खास रुचि। काव्य-पोथी “नेह की बारिशें” घणी चावी
रैयी। केई संकलनां में रचनावां संकलित। अबार जयपुर जिलै री उच्च माध्यमिक विद्यालय
में प्रधानाचार्य रूप कारज। ई-मेल : rajbha.29@gmail.com
पांच
कवितावां
(१)
कीं भूकंप
छानैमानै सा
कणा आवै अर
कित्तो कीं ढोह जावै
ठाह ई कोनी पड़ै
कठै
कांई ढहावै
कियां ढहावै
अर किण ढाळै
पसवाड़ै बगतो माणस ई
ओ कीं नीं जाण सकै
एक जीबती
बुलंद इमारत
बिना किणी हाकै रै
आपरै सगळै रोळै साथै
बदळ जावै फगत ढीगलै में
कारण कांई रैयो हुवैला
कमजोर नींव
खूटता रिस्ता
ढीला बंधण
बधती बिचाळै सीलन
का फेर चिलै उतरणो गाड़ी रो.....
००००
(२)
ठाह नीं कांई हुय
जावै
जद जद थूं जावै
उणियारां री भीड़ में
डूब्योड़ो ओ सैर
हुय जावै खाली-खाली
जाणो कोई साव एकलो
अळधै तांई सागो लेवती
सिंझ्या ढळै कोनी
तारां छाई रात काट्या
ई कटै कोनी
नींदाळूं नैणां राता
खाली-खाली
चांद भेळै सूरज रो
डेरो हुय जावै
हुवै थारा हाथ खाली
अर जेब्यां ई पण हुवै
साव हळकी
खुवै कोनी धरियोड़ो
हुवै कोई झोळो
फेर ई ठाह नीं म्हारो
कांई-कांई लेय नै जावै थूं
बायरो आय’र थम जावै
म्हारै पल्लै
हरफ होठां मांय दब नै
रैय जावै
सळ चोस लेवै माथै री
सगळी लीकां नै
पण सांसां माथै तो
थारी प्रीत रो पैरो हुय जावै.....
(३)
बिना आखरां अर बुणगट
रै
बिना हरफ अर बंतळ रै
होठां हुवैला
अर आंख्यां सूं सुभट
बांचीज जावैला
जूण री कविता
गजब री बेजा रूपाळी हुवै
आ सांस-सांस मैहकै
आ राग-राग गावै
मन वीणा रै साज सूं
सजी
बाजै जाणै तार-तार
इण नै बांचणी कोनी
हुया करै
जीवणी पड़ै
सांस-सांस.....
००००
(४)
लुगाई हुवणो
मतलब एक बैवती जूण
हुवणो
जिकी पकड़िया राखै
एक कांठो तन रो
दूजो मन रो....
दोवां नै
सांधती एक दूजै सूं
बैवती सदा नीर-सरीखी
करती कळ-कळ, कळ-झळ
लुगाई हूं
इणी खातर तो जाणूं
लुगाई हुवण रो अरथाव
एक बैवती जूण हुवणो
हुया करै।
००००
(५)
रैय जावै
बिना आखरां रै
कीं अणबोली बतळावण
जिकी कैवै आंख्यां
सुणै होंठ
गावै काळजो
समझै परस
अर उण मुळक सूं महकै
ऐ रचीजै
जिका प्रीत रा
महाकाव्य
जिकां रै हुवण रो
सबूत
नीं हुय’र ई हुवै सदा
सांम्ही
जूण नदी मांय
जद होळै-सी’क प्रेम
परस करतो निकळै नजीक सूं
चाणचकै बस इयां ई....
००००
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