01 जनवरी, 2011

अनिल जनविजय

ओळूं
होळै सी
भींत नै थोड़ो खूरचूं
जठै लिख्यो हो कदैई
थारो नांव
***

जूण
जक कोनी
फड़फड़ावै
रूंखड़ा सूं तूट नै झर जावै

जूना पानड़ा
नुंवा खातर
आ दुनिया छोड़ जावै
***

बीसवीं सदी रो इतिहास
(1)
रोवतो टाबर
चाणचकै नींद मांय मारी चीसाळी
मा  ए मा ! हिटलर ! हिटलर !!

कुळबुळावतो
बुक्को फाड़र कूक्यो जबरो
अर भळै छानीमानी
पसवाड़ो पोरतो ऊंधीजण लाग्यो
***

(2)
बचण खातर जुध सूं
करती रैयी जुध
आ दुनिया

अर
पूरी एक सदी लड़ती रैयी
आ दुनिया
***

बीसवीं सदी जावो जावो
जावो-जावो
बीसवीं सदी जावो-जावो

जावतां जावतां
सागै लेय नै जावजै थूं
जुद्ध अर
फूंफावती इण दुनिया री रीस
दुनिया रा देसां नै बांटै जिका
हथियारा रा जखीरा
बो डरावणो माहौल

जावो-जावो
बीसवीं सदी जावो-जावो

जावतां-जावतां
सागै लेय नै जावजै थूं
भूख, गरीबी, तंगी, दोराप
अर जूण रा सगळा अपमान
आतंक, शोषण, भय, प्रताड़ना
अर जीवन रा सगळा दुख-दरद

जावो-जावो
बीसवीं सदी जावो-जावो
***

कोनी बिसरायो
कोनी बिसरायो
कोनी बिसरावूं
कोनी बिसरावूंला

जद मन करैला
कविता मांय थनै
परस करूंला
***

एक दिन 
एक दिन
एक फोटू बणाऊंला म्हैं
अर उण रो नाम राखूंला
सोनलिया धुंध

उण मांय
म्हैं होवूंला
थूं होवैला
अर होवैला घणा सारा टाबर

पतझड रै
पीळा सूखा पानड़ा माथै
आडा होयर आपां
होवालां पूरा सोरा-सुखी
***

अनुसिरजण : नीरज दइया

**************************************************************************
हिंदी कवि : अनिल जनविजय ; जलम :  28 जुलाई 1957
काव्य सग्रै : कविता नहीं है यह (1982), माँ, बापू कब आएंगे (1990), राम जी भला करें (2004) अर रूसी भाषा रा घणा ई कवियां रो हिंदी अनुवाद । हिन्दी सूं कबीर री कवितावां रो रूसी अनुवाद । दुनिया भर मांय चावी ठावी वेब-साइट कविता-कोशरा संपादक ।
**************************************************************************






Bookmark and Share

निर्मला पुतुल

आदिवासी लुगायां
बां री आंख री हद तांई
छोटी-सी हुवै बां री दुनियां
बां री दुनिया जैड़ी केई-केई दुनियावां
भेळै है इण दुनियां मांय
ठा कोनी बां नै
बै कोनी जाणै
किंयां पूगै बां री चीजां दिल्ली
जद कै राज-मारग तांईं पूगण सूं पैलां ई
खूट जावै बां री दुनिया री पगडांड्यां
कोनी जाणै कै किंयां सूख जावै
बां री दुनिया तांईं पूगता-पूगता नदियां
फोटूवां किंयां पूग जावै बां री मोटै नगरां
कोनी जाणै बै ! कोनी जाणै !!
***

कांई थानै ठा है 
कांई थानै ठा है
आदमी सूं अलायदी
एक लुगाई री सूनवाड़

घर-वर अर जात सूं न्यारी
कांई एक लुगाई नै उण री जमीन
बाबत बता सको हो थे

कांई बता सको हो थे
जुगां सूं खुद रो घर जोवती
एक बेचैन लुगाई नै
उण रै घर रो ठिकाणो

कांई थानै ठा है
खुद रै मांयोमांय
किण ढाळै एकठ देस अर देसूंटो
साथै जीवै एक लुगाई

सुपनां मांय न्हासती
एक लुगाई रो लारो करतां
कांई दीस्यो थानै कदैई उण रो
रिस्ता रै रणखेत मांय
खुदोखुद जूझणो

डील रै गणित सूं आगै
एक लुगाई रै
मन री गांठां खोल
थां कदैई बांच्यो है
उण मांय खदबदीजतो इतिहास

कदैई थां बांच्यो-
उण री अबोली अमूझ मांय
सबदां री उडीक करतै सूनै उणियारै नै 

उण मांय वंस-बीज बीजतां
कांई कदैई थानै लखायो
उणा री जड़ां पसरती जावै थांरै अंतस

कांई थे जाणो हो
एक लुगाई रै सगळै रिस्तां रो व्याकरण
बता सको हो थे
एक लुगाई नै लुगाई-दीठ सूं देखतां
उण नै लुगाई-जात री ओळखण

जे नीं
तो पछै थे जाणो कांईं हो
ससोवड़ै अर बिछाणै री गणित सूं आगै
एक लुगाई बाबत ……।
***

म्हैं म्हारै आंगणै गुलाब लगाया
इण उम्मीद मांय कै उगैला फूल उण मांय
पण अफसोस कै उण मांय कांटां ई निकळिया
म्हैं सींचती रैयी दिनूगै-सिंझ्या
अर भाळती रैयी उणा रो सटकै बधणो ।

बै सटकै बध्या ई
पण उणां मांय फूल को आया नी
बै फूल जिणां सूं जुड़िया हा म्हारा सुपना
जुड़ियोड़ी ही जिण सूं म्हैं ।

पण घणो खटाव राख्यां ई
उण मांय फूलां रो नीं आवणो
मरणो हो म्हारै सुपनां रो ।

एक दिन लखायो कै
इणा नै उखाड़र बगा दूं
अर इणा री ठौड़ लगाय देवूं-  दूजा फूल

पण सोचूं कै बार-बार उखाड़र फैंकण सूं
अर बां री ठौड़ नुंवा फूल लगाय देवण सूं
कांई कढ जासी म्हारी जिंदगी रा सगळा कांटा ?

खरी बात तो आ है
आपां दावै जित्ता बदळ दां फूल
पण केई फूलां री जूण हुवै इण ढाळै री
जिणां माथै फूलां री ठौड़ लागै कांटां
स्यात म्हारै आंगणै लाग्योड़ा गुलाब
कीं इणी ढाळै रा है म्हारी जिंदगी खातर ।
***

बांसड़ो
बांसड़ो कठै कोनी हुवै
रोही हुवो का भाखर
दीसै हरेक जागा बांसड़ो

बासड़ो जिको कदैई छप्परै मांय लागै
तो कदैई खूंटो बणै तम्बू रो
कदैई बंसरी बणै तो कदैई डंडो
सूप, छाजलो का हुवै भलाई पंखी
सगळा मांय बरतीजै बांसड़ो ।

बांसड़ा री खासियतां ई अजीब है
बो बिना खाद-पाणी रै बध जावै
बीं री किणी नै कोई निगराणी ई नीं करणी पड़ै
दावै जठै लगा दां बांसड़ा नै, लाग जावै

पण ओ कैवणो है बड़ेरां रो
कंवारां छोरा-छोरियां नै नीं लगावणो चाइजै
नीतर सदा खातर बै बांझड़ा रैय जावैला ।

बांसड़ो जठै पण हुवै
खुद री डीगाई रो लखाव करावै
उणा सामीं बीजा रूंखड़ा बावनिया-सा लागै
 
बांसड़ा नै लेयर कैवणियां केई बात्यां कैवै
आदिवसियां री अर कीं बात्यां बां री जिका आदिवासी कोनी
पण बांसड़ा बाबत आदिवासियां रो मानणो
सगळा सूं खास अर उल्लेखजोग है ।

बांसड़ै नै लेयर केई-केई कहावतां-ओखाणा ई है
बां मांय सूं एक कहावत है कै किणी रै बांसड़ो करणो
आं दिनां आ कहावत घणी-घणी चरचा मांय है

अबै इण बांसड़ो करण मांय ई केई-केई अरथ हुय सकै
आ मिनख मिनख री समझ है
कै कुण किसो अरथ लेवै

जे म्हैं थानै कैवूं
थांरै बांसड़ो कर देवूंला
तो अबै थे ई बताओ कै
इण रो कांई अरथ लेवोला ।
***

अनुसिरजण : नीरज दइया


**************************************************************************
संताली कवयित्री : निर्मला पुतुल ; जलम : 06 मार्च, 1972
काव्य-सग्रह : ओनोंड़हेंसंताली कविता संग्रह, हिंदी में नगाड़े की तरह बजते शब्द” (भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली) अर अपने घर की तलाश में। आप नै केई मान सम्मान मिल्या- साहित्य अकादमी, नई दिल्ली सूं साहित्य सम्मान2001 , मुकुट बिहारी सरोज स्मृति सम्मान, भारत आदिवासी सम्मान, राष्ट्रीय युवा पुरस्कार आद । आं दिनां आप सचिव, जीवन रेखा रै रूप मांय कारज करै ।
**************************************************************************



Bookmark and Share