कंवळो मन-मोवणो प्रेम थारो
है पसरियोड़ो च्यारूमेर म्हारै
जद आवैला बिरखा
बो लागैला- घणो ई कंवळो
भिगता-भिगता बिरखा मांय
चालसां जगन्नाथ
मासी रै घरै
मासी रै हाथ रो
खाय नै मीठो
लागसां घणा ई रुपाळा ।
समंदर तो जोड़ देवै सगळा नै
ओळूंवां रै सुपनां नै…
बता थूं नटवर !
किसै सुपनै मांय मगन है
कळप-बिरछ री डाळी माथै
उडतो फिरै- थारी प्रीत रो पंछी
अबकी म्हैं पूगी
पुरी मांय देखण नै थन्नै
कांई थूं ई’ज
उडग्यो अळघो कठैई ?
थनै म्हैं जोवूंला कठै –
सुरगां रै दरवाजै (पुरी रा मसाण)
का समंदर मांय ?
***
इणी ढाळै जीवण
इणी ढाळै जीवण
खूट जावैला- एक दिन
टोप-टोपो कर नै…
बापड़ी चिड़कली-सी
ताकती आयो
पड़ी हुवैला ठीक बियां ई
खाली डोंगी
नदी रै कांठै ।
म्हैं जाणूं-
छूट जावैला स्सौ कीं लारै-
व्हाली पोथ्यां
सगळा ओळू-एलबम
इणी ढाळै जीवन
खूट जावैला- एक दिन
टोपो-टोपो कर नै ।
कनेर रै रूंखां माथै
हुवैला घणा सारा फूल
सदीव तेज ‘सालेदी’ माथै
(सालंदी ओडिसा रै भद्रख जिलै री एक नदी)
उतर आंवती हुवैला
अर घिर नै पाछी जावती हुवैला-
चांदणी रात ।
फेर ई जाणूं-
म्हनै स्सौ कीं छोड़’र
पड़ैला जावणो
एक दिन
पक्कायत एक दिन ।
म्हारै टाबरपणै-
म्हैं बुलावती- बादळां नै
आव ! बादळ आव !
कैंवती बिरखा सूं-
ठैर ! ठैर जाव !
आज कठै गुमग्यो-
बो मौसम
कठै है बा लाडेसर नदी ?
छिजती जाय रैयी हूं म्हैं
होळै-होळै…
टोप-टोपो कर नै ।
आभै माथै मंडियोड़ा मांदणा
बिरखा मांडिया मांडणा
घिरण लागी है सिंझ्या
कठै है बादळ
कठै है लाडेसर नदी ?
***
अनुसिरजण : नीरज दइया
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उड़िया कवयित्री : मनोरमा विश्वाल महापात्र ; जलम : 1948 बालेश्वर जिलै रै गिगाई गांव मांय।
कविता संग्रै : 12 कविता पोथ्यां प्रकासित नै विविध विधावां में ई लेखन अर प्रकासन । उड़ीसा साहित्य अकादमी सूं काव्य पुरस्कार ।
ठिकाणो- प्रीतमपुरी, 125, आचार्य विहार, भुनेश्वर (ओडिसा) 751001 अंतरजाळ माथै- http://manobm.com/index.htm
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