17 दिसंबर, 2010

मंगलेश डबराल

संगतकार
खास गायक रै भाखर जैड़ै भारी सुर रो सागो करती
बा आवाज सुरीली थाकल धूजती पण सागै ही
बो खास गायक रो छोटियो भाई है
का उण रो चेलो
का उपाळो चालर आवणियो दूर रो कोई रिस्तैदार
खास गायक री गरज मांय
बो आपरी गूंज रळावतो आयो है बरसां सूं
गायक जद अंतरै री अबखी तानां री रिंधरोही मांय
गुम जया करै
का खुद री ही सरगम नै डाक
जावै परो भटकतो-भतकतो एक अणहद मांय
तद संगतकार ही स्थाई नै सांभ्या रैवै
जाणै सांवटतो हुवै खास गायक रो लारै रैयो सामान
जाणै उण नै चेतै करांवतो हुवै उण रो बाळपणो
जद बो नौसिखिया हो
तारसप्तक मांय जद बैठण लगयो उण रो गळो
प्रेरणा सागो छोड़ती थकी उमाव रै ढळाव माथै
आवाज सूं राख जिसो कीं पड़तो थको हो जद
तद ई खास गायक नै ढाढस बंधावतो
कठैई सूं चालर आय जावै संगतकार रो सुर
कदैई-कदैई बो इंयां ई कर लेंवतो उण रो सागो
ओ जतावण खातर कै बो कोनी एकेलो
अर ओ कै भळै गायो जाय सकै है
गाइज्योड़ो राग
अर उण री आवाज मांय एक झिझक साफ सुणीजै
का खुद रै सुर नै ऊँचा नीं उठावण री जिकी कोसिस है
इण नै उण री असफळता नीं
इनसानियत समझी जावणी चाइजै
***

थारै मांय
एक लुगाई रै कारणै थनै मिलग्यो एक खुण
थारी ई हुई उडीक

एक लुगाई रै कारणै थनै दीख्यो आभो
अर उण मांय विचरतो चिड़कल्यां रो संसार

एक लुगाई रै कारणै थूं अचरज करियो बारम्बार
थारी देही कोई गई अळी

एक लुगाई रै कारणै थारो मारग अंधारा सूं बचग्यो
रोसणी दीसी अठी-उठी

एक लुगाई रै कारणै एक लुगाई
च्योड़ी रैयी थारै मांय ।
***

सहर
म्हैं सहर नै देख्यो
अर मुळक्यो
बठै कोई किंयां रैवास कर सकै
आ ठाह करण नै गयो हो
अर पूठो कोनी बावड़ियो ।
***

कविता
कविता आखै दिन रै थाकैलै जैड़ी ही
अर रात मांय नींद जैड़ी
दिनूगै पूछियो म्हनै
कांई थूं जीमर सूतो रात नै !
***

सबद
थोड़ाक सबद चीखै
थोड़ाक गाभा उतार
घुस जावै इतिहास मांय
थोड़ाक रैय जावै मून ।
***
अनुसिरजण : नीरज दइया

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हिंदी कवि : मंगलेश डबराल ; जलम : 16 मई, 1948
कविता पोथ्यां : पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं, आवाज भी एक जगह । पहल सम्मान, ओमप्रकाश स्मृति सम्मान, श्रीकान्त वर्मा पुरस्कार अर "हम जो देखते हैं" खातर साहित्य अकादमी पुरस्कार । पूर्वग्रह, जनसत्ता, सहारा समय, नेशनल बुक ट्रस्ट आद मांय कारज करियो ।
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