इयां ई म्हैं
लगायो इलजाम
आंतरै नै कोसतो-
कै म्हैं थारै तांई
पूग कोनी सक्यो ।
ऊंधी दिसावां मांय
जोवता रैया आपां
एक दूजै नै,
म्हारो मूढो अठीनै
थारो बठीनै
नसड़ी घुमार
लारै जोवण री कोसिस
ना थूं करी
ना म्हैं करी
थूं हाथ उठाय’र
कोनी पाड़ियो हेलो
अर अबोली रैयी
थारी चूड़िया ।***
सरूपण
जद-जद
थूं देखै आरसी
विचारै-
म्हैं फलाणी सूं
कितरी हूं रूपाळी
तद पड़ै तरेड़
थारै पड़बिंब मांय
अर हुय जावै
कीं फीको थारो रूप
थारै चैरै री चमक
जाणै कठैई हळकी-सी
मगसी पड़ जावै
फेर किरची-किरची हुय’र
खिंड जावै
थारो उणियारो
थूं रैय जावै
स्याणां सूं
और हीणी
और अधूरी !
***और हीणी
और अधूरी !
अनुसिरजण : नीरज दइया
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पंजाबी कवि : गुरमीत बराड़
कविता संग्रै : तीन कविता संग्रै प्रकासित नै विविध विधावां में ई लेखन अर प्रकासन । http://www.gurmeetbrar.com/
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