थे कोनी जाणो
जद म्हैं महकतै फूलां सूं
दीखूं खिल्योड़ो
तद थे करो म्हारी सरावणा।
म्हारी जाड़ी छींया
लेवो कीं बिसाई
अर होवो राजी
पण तद थे नीं जाणो
कै मांय सूं म्हैं
कितरो खाली हूं।
अर जद
बसंत पीठ फोरै
पतझड़ म्हनै सूनो कर देवै
तद म्हारै पाखती कोई नीं आवै!
पण तद थे कोनी जाणो
मांय सूं म्हैं खिलण लागूं!
थे तो फगत
हरेक दाण
बसंत रो अंत ही
देख सको हो
बो मांय म्हारै
ढूकै किंयां
नीं देख सको!
***
अनुसिरजण : नीरज दइया
मराठी कवयितत्री : आसावरी काकड़े ;
काव्य सग्रै : मराठी मांय केई कविता संकलनां भेळै हिंदी मांय मौन क्षणों का अनुवाद १९९७ अर इसीलिए शायद २००९ कविता संग्रै। बोलो माधवी रै मराठी अनुवाद खातर साहित्य अकादेमी रो अनुवाद पुरस्कार । वेब-साइट http://asavarikakade.com/ ई-मेल :asavarikakade@gmail.com
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