ओळूं
होळै सी’क
भींत नै थोड़ो’क खूरचूं
जठै लिख्यो हो कदैई
थारो नांव
***
जूण
जक कोनी
फड़फड़ावै
रूंखड़ा सूं तूट नै झर जावै
जूना पानड़ा
नुंवा खातर
आ दुनिया छोड़ जावै
***
बीसवीं सदी रो इतिहास
(1)
रोवतो टाबर
चाणचकै नींद मांय मारी चीसाळी
मा ए मा ! हिटलर ! हिटलर !!
कुळबुळावतो
बुक्को फाड़’र कूक्यो जबरो
अर भळै छानीमानी
पसवाड़ो पोरतो ऊंधीजण लाग्यो
***
(2)
बचण खातर जुध सूं
करती रैयी जुध
आ दुनिया
अर
पूरी एक सदी लड़ती रैयी
आ दुनिया
***
बीसवीं सदी जावो जावो
जावो-जावो
बीसवीं सदी जावो-जावो
जावतां जावतां
सागै लेय नै जावजै थूं
जुद्ध अर
फूंफावती इण दुनिया री रीस
दुनिया रा देसां नै बांटै जिका
हथियारा रा जखीरा
बो डरावणो माहौल
जावो-जावो
बीसवीं सदी जावो-जावो
जावतां-जावतां
सागै लेय नै जावजै थूं
भूख, गरीबी, तंगी, दोराप
अर जूण रा सगळा अपमान
आतंक, शोषण, भय, प्रताड़ना
अर जीवन रा सगळा दुख-दरद
जावो-जावो
बीसवीं सदी जावो-जावो
***
कोनी बिसरायो
कोनी बिसरायो
कोनी बिसरावूं
कोनी बिसरावूंला
जद मन करैला
कविता मांय थनै
परस करूंला
***
एक दिन
एक दिन
एक फोटू बणाऊंला म्हैं
अर उण रो नाम राखूंला
सोनलिया धुंध
उण मांय
म्हैं होवूंला
थूं होवैला
अर होवैला घणा सारा टाबर
पतझड रै
पीळा सूखा पानड़ा माथै
आडा होय’र आपां
होवालां पूरा सोरा-सुखी
***
अनुसिरजण : नीरज दइया
हिंदी कवि : अनिल जनविजय ; जलम : 28 जुलाई 1957
काव्य सग्रै : कविता नहीं है यह (1982), माँ, बापू कब आएंगे (1990), राम जी भला करें (2004) अर रूसी भाषा रा घणा ई कवियां रो हिंदी अनुवाद । हिन्दी सूं कबीर री कवितावां रो रूसी अनुवाद । दुनिया भर मांय चावी ठावी वेब-साइट ‘कविता-कोश’ रा संपादक ।
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नीरज जी थारो एक और....अध्भुत सिरजण....बहुत बढ़िया अनुवाद...मूल पढ़ी कोनी...पण लागै भी कोनी क’...पढ़ी कोनी...
जवाब देंहटाएंभाई नीरज जी,
जवाब देंहटाएंभारतीय भाषाओँ की कविताओँ का एकसाथ अनुवाद का उपक्रम आज तक शायद ही किसी ने किया होगा । आपने निश्चय ही महान काम किया है ! बधाई !
भाई अनिल जनविजय की कविताओँ का राजस्थानी अनुवाद पढ़ कर आनँद आया । बहुत अच्छा अनुवाद किया है । आपको एवम अनिल जनविजय जी को बधाई !