सूतै देस मांय
म्हैं नीं जाणूं, सूतै देस मांय
थूं किसो सपनो देख रैयो हुवैला ।
जे देखै रैयो हुवै एक सपनो
बो देखती वेळा कथीज किंयां ।
कांईं टाबर एकै साथै रोळा मचा रैया हुवैला ?
“ओ तावड़िया निकळ बारै आव-
छींया स्याणी थूं मांयनै जाव परी ।”
तावड़ो पछै क्यूं डरै, लगायो हुवैला स्यात् ?
“फासिस्ट नीं आयो-
डरण री कोई बात कोनी
ओ तावड़ा थूं निकळ परो आव,
सूतै देस मांय ।”
***
है बै
थिर भाखरां नै ऊंड़ै तांई परसणवाळा
हथौड़ै सूं तोड़ै है भाखर- “थड़्” “थड़्”
राती माटी वाळै मारगियै ऐकै कानी केई लोग
जेठ-असाढ रै बळबतै तावड़ियै मांय ।
खन्नै सूं ई’ज भर्योड़ा केई ट्रक-गाड़ियां
दौड़ता-भागता निकळै- धमकावता, एक पछै एक ।
थोड़ी भांव आंतरै पौरोदार बण्योड़ो है एक इंजण ।
देख’र गया परा पाछा केई लोग
साथै बांरा कुत्ता ई देखग्या बां नै उड़ती-उड़ती नजरां सूं ।
हांफीजता केई कागला
उडग्या अर कर दियो तावड़ो अणूतो आकरो ।
दिनूंगै सूरज री पैली किरण सूं
सूरज बिसूंजण री छेहली किरण तांईं
कोनी बंद हुवै बोलता बां रा हौथोड़ा
पड़ जावै जद साव मांदो आभै मांय उजास
बै पौंछैला परसेवो आपरै ललाट सूं खुद रै ई हाथां ।
***
टेलीग्राफ
एक पंखेरू रो बचियो
खिड़की नै मारग बणा उड़तो-उड़तो
आय बैठ्यो म्हारी मेज माथै ।
हुयोड़ो है लोही-झांण
शिकारी री गोळी लागगी कांई ?
का किणी पिंजरै सूं नीठा छूट’र आयो है ?
उण री आंख्यां मांय आंसुवां री नदी
बैयां जावै लगोलग.... ।
ब्यांव पछै बन्ना-बन्नी
मुळकता-मुळकता उतर रैया है
स्नेह-समदर मांय भोगण लाखीणी रात ।
रगत री नदी बैवण वाळी
मिनखां रै मांस रो कादो कर भर्योड़ी है
केई केई लड़ायां लड़ीज रैयी है
हार-जीत रो फौसलो हुय रैयो है ।
बगीचै सरीखी इण दुनिया मांय
रंग-रूप मांय बेजोड़
काल रो खिल्योड़ो फूल
चोखी भांत पाक्योड़ो फळ
आभै मांय रळग्यो है
केई खिल्योड़ी है कूंपळां ।
कठै है जग बो जिको दिख्यो नीं हुवै
कुण सो है पंखेरू जिको मिल्यो नीं हुवै ?
***
एक सुपनो
किण री आ चीलगाड़ी है जिकी उड़ै आभै
बेगो-बेगो जाणै कोई खथावळ मांय
कांईं पूछां, कठै जावै है,
कठै सूं आवै है !
कांईं कोई समाचार सुणियो है,
ओ कै ’अवा” (बर्मा) देस नै बरबाद कर दियो रे
इरावती रौ कांठै-काठै
’निङ्थि’ (चिंदविन नदी) रै उण पार सूं
भारत रै अगूणी पासी- बरमा रै मारग सूं
स्यात् पूगग्या हुवैला सोनलिया देश- मणिपुर ।
बम्ब-तोप रा गोळा सूं
उड़ जावै मिनख बण फूंतरो छींटी-छींटी बायरै मांय ।
बायरै मांय खिड़्यो रगत
जाणै बादळ बण बरसावण लागै टोपा-टोपा रगत जमीन माथै ।
मिनख रै डील रा फूंतरा रगत मांय रळ परा
मिनख मांस बण जावै कादो ।
टाबरां री छात्यां ई बणगी
सिपाहियां रो भोज
संगीनां रो खोज ।
लुगायां रा डील
तलवार अर छुरी री धार परखण री ठौड़
संगीन री नोक नै परखण री ठौड़ ।
आथूंणै यूरोप मांय,
अगूणै ऐसिया मांय ।
बेटा-बेटी अर घरघणी सूं बिछड़ी लुगायां
हाथ उठावती काढै गाळां- दुखी आतमावां सूं ।
दुख मांय बिलखती मारै हेला
बै हेला बायरै सूं लगाइजै
भूमध्य, रगत मांय डूब्यै अरब सागर रै पार
अलेखूं भाखरां, झीलां अर नदियां पार सुणीजै ।
बरफ रै देसां सूं लाइजै
हिमालय रै उण पार सूं ।
इत्तो हुयां ई काळजै ठंडक कोनी
ठंड कोनी बापरी, जाणै बरफ ई है अगन बणगी ।
“सांसां मांय मिनख रा फूंतरां”
“पीवण रै पाणी मांय रगत रा टोपा”
म्हारै दांईं कितरा ई मिनख
देखता हुवैला ओ सपनो
भीतां रै मांय ।
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अनुसिरजण : नीरज दइया
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मणिपुरी कवि : हिजम इरावत सिंह ( 30 सितम्बर, 1896 – 26 सितम्बर, 1951 )
आधुनिक मणिपुरी साहित्य रा महत्त्वपूर्ण रचनाकार रूप ओळखीजतो नांव | आपरा दोय कविता संग्रै प्रकाशित हुया अर जनकवि रै रूप मांय ओळखीजतो एक मोटो नांव है कामरेड हिजम इरावत सिंह रो ।
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