म्हारा मसाण कठै ?
आभै मांय
उडण वाळा पंखेरू
आय’र बैठ जा
किणी डाळी माथै
म्हारै आखती का पाखती
थोड़ी’क ताळ खातर
म्हैं थनै देखणो चावूं
थारी पांख्यां नै
जिकी लेय जावै थनै
दूर आभै मांय
अर बणावै
हिस्सो कुदरत रो
पांख्या-
जिकी म्हैं ई लगाई कदैई
अर बणणो चायो हो
हिस्सो खुद री जमीन रो ।
पांख्यां- थारी पांख्यां
जिकी लेय जावै थनै
जमीन सूं आभै तांई
पांख्यां- म्हारी पांख्यां
जिकी फड़फड़ावती ही
जद हर मांय कुळबुळावती
बुलावै ही म्हनै
गांव री हरियाळी
सियाळै रो ठंडो समीकरण
थनै ई ऐड़ो लखावै कांईं
जद थूं बावड़ै कर जातरा
आभै सूं जमीन माथै ?
आभै मांय उडण वाळा फंखेरू
आय’र बैठ जाव
किणी डाळी माथै
म्हारै आखती का पाखती
थोड़ी’क ताळ खातर
थासूं कीं कैवणो है
कीं पूछणो है म्हनै
ओ आभै रा वासिंदा !
बावड़ै पाछो अळधै आभै सूं
सिंझ्यां पैली
क्यूं थूं थारै घोसळै मांय ?
कदैई मारग भूल नीं भटकै
बादळ, बिरखा का कोई भाखर
नीं ढाब सकै कदैई थारो मारग ?
कीं तो बताव
कीं सीखाव म्हनै ई’ज ।
आभै मांय उडण वाळा फंखेरू
आय’र बैठ जाव
किणी डाळी माथै
म्हारै आखती का पाखती
खोल दे अबै तो थूं थारो मून
म्हैं थारी गूंगी भाषा
नीं समझ सकूं
कांई कोई राजनीति
डरावै थनै ई’ज ?
बेघर हुवण रो डर है ?
कांई टोळी सूं टळ्यां
थारै मांय ई जागै
म्हारै सरीखो भाव ?
आभै मांय उडण वाळा फंखेरू
आय’र बैठ जाव
किणी डाळी माथै
म्हारै आखती का पाखती
अर होळै सूं
निरायंत नै धीजै सूं
आव बताव
कांई थूं गयो हो
म्हारै गांव कानी
कांई थूं देख’र आयो
म्हारा खेत
सरसों रा फूल ।
किसो’क है बां रो रंग
रातो, मूंगो का धोळो-धप्प ?
कांई थूं मिल्यो
बठै नदी रै कांठै पसवाड़ै
म्हारै घर-आंगणै मांय किण सूं
का हुया भेटा थारा
उठै उण रूंख हेठै
म्हारी ’आतमा’ सूं ?
ऊंचै आभै मांय उडण वाळा फंखेरू
आय’र बैठ जाव म्हारै खन्नै
किणी डाळी माथै
थोड़ी’क ताळ खातर
डर मत ना,
म्हारै खन्नै “क्लाश-नि-कॉफ” नीं
इतरो बता ’दिशव’
कै थूं म्हनै लेय जावैला कांई
खुद रै साथै आभै मांय
जद आ म्हारी जमीन
तिरसकार कर छिटकावैला म्हनै ?
ओ ई नीं बतावैला
तद इत्तो तो भलो करजै
कै सिंझ्यां हुया पैली
उड़ परो जाय आव
बस एक बार
म्हारै गांव कानी
संभाळ आव
म्हारा मसाण कठै
थाकग्यो (जोवतो-जोवतो)
अबै लेवणी चावूं
नींद निरायंत सूं !
***
अनुसिरजण : नीरज दइया
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