सबद
जिको हो सोच मांय
बो नीं रैयो
पूरो रो पूरो
सबद मांय ।
पण रैया सबद
ठिकाणो बतावता
उण सोच रो ।
***
मिनख अर पोथ्यां
उडीकै मिनख
कै कोई
बांचै बां नै !
रचै मिनख–
पोथ्यां ।
उडीकै पोथ्यां ई’ज
कै कोई
बांचै बां नै !!
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अनुसिरजण : नीरज दइया
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हिंदी कवि : प्रयाग शुक्ल ; जलम : 28 मई, 1940
कविता संग्रै : कविता संभव (1976), यह एक दिन है (1980), रात का पेड़, अधूरी चीज़ें तमाम (1987), यह जो हरा है (1990) । कवि, कथाकार अर कला-समीक्षक रै रूप में आखै देस में चावो-ठावो नांव । 1963-64 में 'कल्पना' (हैदराबाद) रै सम्पादक मंडल में रैया अर जनवरी 1969 सूं मार्च 1983 तांई 'दिनमान' रै सम्पादकीय विभाग में काम करियां पछै दैनिक 'नवभारत टाइम्स' रै सम्पादकीय विभाग में केई बरसां काम करियो । आप ललित कला अकादमी री हिन्दी पत्रिका 'समकालीन कला' रा अतिथि सम्पादक ई रैया ।
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