म्हारो ठिकाणो
आज म्हैं म्हारै घर रा
मिटाया है नम्बर
अर हटायो है
गळी रै माथै लटकतो
गळी रो नांव
अर द्योड़या है ऐनाण-सैनाण
हरेक सड़क री दिसा रा
पण जे म्हनै पावणो है-
पक्कायत ही
तो हरेक देस रै
हरेक शहर री
हरेक गळी रो खड़खड़ाओ आडो
ओ एक सराप है
एक वरदान है
अर जठै ई थानै पड़ै भळको-
आजाद आत्मा रो
- जाणजो बो ई है –
म्हारो घर ।
***
अमृता प्रीतम
एक दरद हो -
जिको म्हैं पीयो
चुपचाप – सीगरेट दांई
फगत कीं नजमां है -
जिकी म्हैं झाड़ी
सिगरेट सूं – राख दांई …
***
खाली जागा
हा फगत दोय रजवाड़ा
एक उखाड़ करियो बारै
म्हनै अर उण नै
अर दूजै नै
करियो हो छिटकाय न्यारो
म्हां दोनूं ।
उघाड़ै आभै हेठै –
म्हैं कितरी ई’ज ताळ
भीजती रैयी
डील रै मेह मांय
बो कितरी ई ताळ
गळतो रैयो
डील रै मेह मांय
फेर बरसां रै मोह नै –
गिट परो एक जैर दांई
उण धूजतै हाथां सूं
झाल्यो म्हारो हाथ
चाल ! बगत रै छाती माथै
बणावां दोनूं एक छात
बो देख !
दूर – सामीं, बठीनै
सांच अर कूड रै बिचाळै
कीं जागां खाली है ……
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अनुसिरजण : नीरज दइया
कागद अर कैनवास / अनुवाद / नीरज दइया |
कागद अर कैनवास / आवरण : इमरोज |
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पंजाबी कवयित्री : अमृता प्रीतम ;
जलम : 31 अगस्त 1919, सरगवास 31 अक्तूबर 2005
जलम : 31 अगस्त 1919, सरगवास 31 अक्तूबर 2005
कविता संग्रै : रै अलावा केई केई पोथ्यां प्रकासित । बरस 1957 रै साहित्य अकादमी पुरस्कार अर भारत रै सर्वोच्च साहित्त्यिक पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार सूं “कागज ते कैनवास” पोथी सारू सम्मानित ।
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