सड़क सूनी
अर अंधारो अणमाप,
मोड़ माथै
चर्च मांय मोणबत्तियां रो उजास
‘कैरोल’ गावै लोग
बारै आवैला कांई ?
ठाडो ठंडो बाजै बायरियो बारै
सांय-सांय ।
लरलै बरस
‘बार’ मांय हा म्हे तीनूं
इण घणी
श्याम तो अबै ई’ज हुवैला बठै
अर अजीत…?
लगोलग भूसै
तळाब रै उन पार
ओळूंवां रा लावारिस गंडकड़ा ।
अंधारै सूं खुंवां रळायां
चिंथता थका पत्तियां माथली ओस
धक्को देवतो उण मून नै
चालतो जावतो
लगोलग
अर सीयां मरतै हाथां नै जेब मांय घाल्यां
विगतवार गिणता रैवणो सिक्का
ठैर-ठैर’र
लखाव है निवास रो ।
कड़ाकै रै सियाळै मांय
इत्तो ई’ज…
श्याम तो ‘बार’ मांय हुवैला
अबै ई’ज बेसुध
अर अजीत… ?
बारै कड़ाकड़ावती ठंड है
सड़का सूनी
अर अंधारो अणमाप !
***
एक्वेरियम मांय
एक्वेरियम मांय
सपनां री रंग-रंगीली मछल्यां
तिरै आखी-आखी रात
अर दिनूगै
जीव अमूझै मछल्यां रो
आक्सीजन बिहूणै पाणी मांय ।
साचाणी
सपना री मछल्यां
चूस लेवै समूळी आक्सीजन
अर बणाय देवै जैरीलो
म्हारी आंख्यां रै एक्वेरियम रो पाणी ।
भळै दिनूगै
ऊंधा’र सगळो बासी पाणी
भरूं म्हैं एक्वेरियम
हियै बैंवती नदी रै
मंतरियोड़ै पाणी सूं ।
***अनुसिरजण : नीरज दइया
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नेपाली कवि : पदम क्षेत्री
जलम : बि.सं. 2008, जेठ 3 गते, तुरा, मेघालय, भारत
कविता संग्रै : 'आदिम सडक' (1985)
जलम : बि.सं. 2008, जेठ 3 गते, तुरा, मेघालय, भारत
कविता संग्रै : 'आदिम सडक' (1985)
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