29 नवंबर, 2010

रामसिंह चाहल

पाणी
नदियां अर आंख्यां रै पाणी मांय
कीं खास फरक नीं है

नदियां रो पाणी
जद कदैई सूखै-
जमीम रोवै
अर टाबर तरसै
एक-एक गास खातर
अर आंख्यां रो पाणी
जद कदैई सूखै-
एक मोह तूटै
अर टाबर गोदी नै तरस जावै ।

अर फेर नदियां रो पाणी
जद कदैई उछळै
बाढ आवै
अर टाबर
एक टुकड़ै छींया नै तरस जावै,
पण जद आंख्यां रो पाणी
जद कदैई उमड़ै-
आंसू बैवै
अर टाबर
तरस जावै एक मा खातर ।
***

माटी-1
म्हारा टाबरा
थानै ठाह ईज है-
एक दिन
थानै म्हारै खन्नै आवणो है
तो पछै ऐ
बम, बंदूकां अर राइफलां !
कठैई म्हारै खन्नै
बेगो पूगण खातर
तो नीं बणाया !!
***

माटी-2
खेत री माटी
अर मन री माटी मांय
कीं घणो फरक नीं हुवै
खेत री माटी मांय
जिको बोवां
फगत
बो ई ऊगै !
अर
मन री माटी मांय
जिको नीं बोईजै
केई-केई वळा
बो ईज उगियावै ।
***
अनुसिरजण : नीरज दइया


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पंजाबी कवि : रामसिंह चाहल  (1950-2007)
कविता संग्रै : 'अग्ग दा रंग' (1975), 'मोह मिट्टी ते मनुख' (1990), 'इथों ही किते' (1992) अर 'भोंई' (2000) । पंजाब रै मानसा ज़िले मांयलै एक छोटे-से गाँव 'अलीसेर खुर्द' मांय किसान परिवार में जलमिया कवि चाहल सूं म्हारा केई कागद-पत्र हुयां । बां रो हिन्दी में एक कविता संग्रह - 'मिट्टी सांस लेती है' (1993) बां भेज्यो । दोनूं म्हे अनुवाद कारज रै मारफत जुड़िया बां ई भारतीय भाषावां सूं कवितावां रो पंजाबी अनुवाद करियो । बां नै केई मान-सम्मान ई मिल्या, जियां नेशनल सिमपोज़ियम ऑफ पोइट्स-2004, जनवादी कविता पुरस्कार-2002, पंजाबी कविता संग्रह 'भोंइ' पर 'संतराम उदासी(लोक कवि) पुरस्कार-1994 अर सरदार हाश्मी पुरस्कार-1992 से सम्मानित । जद बै नीं रैया अर खासा दिनां पछै म्हनै ठा लाग्यो तद पतियारो ई नीं हुयो कै आप नीं रैया । आप रै नीं रैवण सूं मन मांय ठाडो दुख हुयो जाणै एक मीत बिछड़ग्यो अर जिण सूं मिलणो हो उण सूं अठै कदैई मिलणो नीं हुवैला ।    
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