17 दिसंबर, 2010

योसेफ मेकवान

कवि रो मरण
आंगणै मांय
सोनचम्पा री झुक्योड़ी डाळी माथै
सुणीजै बुलबुल रा बोल ।
चौफेर तावड़ो तपै
म्हैं मून इण ढाळै
डूब्यो उण रै गाणै मांय
कै म्हनै म्हारी ई खबर कोनी
कितरा बरसां पछै
म्हैं आं नैणां सूं निरखूं
म्हारै ई गाणो
बन बाग सगळा
जाणै म्हारै अंग-अंग फरूकै…
आ सहर रै वातावरण री कांचळी
जाणै अबार उतरती हुवै…
इत्तै मांय बिचाळै रेडियो चालू हुयग्यो
पाड़ोस रै घर मांय
बां री आवाज सूं
अंतस रो मून तूटग्यो
अर हुयग्यो कवि रो मरण !
***

जळ
कैया करै कै
जळ जीवण है ।
जळ रै आंख कोनी
इणी खातर दावै जठै
बैवै, फिरै, गिरै, झरै ।
जळ रै पग कोनी
इणी खातर दावै जठै
रैवै, ठैरै, चढै, पड़ै ।
जळ रै हाथ कोनी
इणी खातर दावै जठै
पकड़ै, तोड़ै, जकड़ै, मसळै ।
जळ रै दुख कोनी
इणी खातर सगळी जागा
मिलै, चलै, बळै, झुकै ।
कैया करै कै
जळ जीवण है ।
फूटै रूंख मांय, टूटै रूंख मांय
खूटै रूंख मांय, जूझै रूंख मांय
रूंख मांय आखा रा आखा सागर भरिया है
सागर मांय आभा रा आभा पळिया है
रूंख मांय मून रा मून ढळिया है
रूंख मांय जुगां रा जुग मिळिया है ।
जळ बस जळ है ।
फगत जळ
पीवूं, पड़ूं, चाखूं, राखूं
इण रो स्सौ कीं सैवूं
बो स्सौ की झेलू
बो सगळी ठौड़ खिलै
न्यारै-न्यारै रूपां मांय
जूनै रूपां मांय
जळ जीवण है
जळ मरण है
मतलब जळ,
जळ जळ हुय जावै
कैयो जावै
जळ ई जीवण है !
***
अनुसिरजण : नीरज दइया

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गुजराती कवि : जोसेफ मेकवान  ;  जलम : 9 अक्टूबर, 1935 त्रणोल (आणंद) खेड़ा, गुजरात ; निधन : 28 मार्च, 2010
उपन्यास आंगलियात खातर साहित्य अकादेमी पुरस्कार । उपन्यास, रेखाचित्र, कहानी, निबंध, आलोचना आद री 50 रै नैड़ै पोथ्यां प्रकासित । आंगलियात उपन्यास रो राजस्थानी अनुवाद जेठमल मारू करियो, जिण माथै अनुवाद पुरस्कार मिल्यो ।
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