18 दिसंबर, 2010

सुभाष मुखोपाध्याय

अनोखो बगत
ओ एक घणो अनोखो बगत है

जद जूनी नींव
रेत दांई भुरण लागगी
इण अबखै बगत मांय आपां भाई-भाई
छींटी-छींटी हुयर खिंड रैयां हां ।

कुण लुका राखी है
बगलां मांय छुरी
कुण जाणै कुण किण खातर
पाळिया बैठियो है बैर
आपां कोनी जाणा
खुवै माथै हाथ धरतां ई
अबै लागै डर ।

अंधारै मांय सांपां जिसी जीभां
जद करै खुसर-फुसर
तद लागै
कोई आपां नै अदीठ आरी सूं
जाबक चिना-चिना टुकड़ा मांय बंधार रैयो है ।

जद
एकठ मुट्ठी भींचर ऊभा हुवण सूं ई
आपां नै स्सौ कीं मिल सकै हो-
तद
काचर रा बीज बोवतो
एक टुकड़ो धिंगाणै मूंडै मांय दबा
चोरां रो एक टोळो
आपारो स्सौ कीं लियां जावै है !
***

आ जमीन
किणी री कैयोड़ी बात्यां माथै
कोनी म्हनै अबै पतियारो
म्हनै चाइजै पुखता सबूत ।
म्हैं कैयी जिकी बातां माथै
करै कोई पतियारो
म्हैं आ कद चावूं,
अगन मांय
रगत मांय
जुध मांय
सगळा अजमायर देख लो म्हनै ।

इण अंधारै मांय
म्हनै दीसै उणियारा डरावणा -
जिका खुद रै कौल सूं
एक दिन भरमायो खुद म्हनै ।
भलाई हत्या नै बै दावै जिको नांव देवै
जुध नै बै दावै जिका बागा पैरावै
मरण रै पण किणी रूपाळै नांव सूं
कोनी पलटूंला म्हैं ।

सागर सूं हिमाळै तांई
धरती है म्हारै पतियारै री
म्हनै भरमाय नै बात्यां मांय
नीं खोस सकै कोई उण नै ।
***

अनुसिरजण : नीरज दइया


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बंगाली  कवि : सुभाष मुखोपाध्याय 
जलम : 12 फरवरी, 1919 सरगवास : 8 जुलाई, 2003
कविता-पोथ्यां : केई काव्य संग्रै नै विविध विधावां मांय लेखन प्रकासित जत दुरेई जाय माथै बरस 1963 रो साहित्य अकादेमी पुरस्कार अर बरस 1991 रो ज्ञानपीठ पुरस्कार ।
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