05 अक्टूबर, 2011

मुत्तुलक्ष्मी

धुण लाग्योड़ा दिन
आ कुबाण काठी लागगी लारै
बिचाळै सूं पाछो मुड़ी आवूं
हरेक दाण ।

हुवै सामनो भूलां सूं
अर टुकड़ा मांय मिली
कामयाबी रै साथै
जिका भेज्या हा पाछा
जूण-जातरा रा अखूट आखर ।
  
बारंबार आवूं-जावूं उण पछै ई
खाडा अर धोरां री
सैंध कीं काम कोनी आवै
सामीं ऊभा होय जावै रोड़ा दांईं
सायरै खातर बपरायोड़ा साधन ।

काच री भींत माथै
हाका करता मारै थाप्यां
मारग री खोज
गांठ्यां खोलता-खोलता
बधता जावै भेद
महीना अर बरसां बिचाळै
बेरहमी सूं
सोख लेवै दिनां मांय सूं निरांयति
तौफान रै चक्कारियै दांईं ले उडै ।
***

सोबत
उजास नै ऊपर सूं थाम’र
सुरां नै संजोया राख्या
कर रिंधरोही रै कोल माथै पतियारो
घोसळो बणायो म्हैं ई ।

कदै-कदास लाग जावै
अणचाइजतो लांपो  
तद चलार’र रिंधरोही
बुलावै मेह मामै नै, बरसावै सागीड़ो मेह
बुझा’र अगन करै निरभय ।

अंधारै रै सागै
पसर जावै सूनवाड़
इण ढाळै अमन-चैन रै माहौल मांय
खुद खुद री परखूं धार
छीणी री आवाज भेळै
लालच
रिंधरोही रै बारै
माडाणी करावतो रैवै- भटका ।
***

अनुसिरजण : नीरज दइया
  
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तमिल कवयित्री : एस. मुत्तुलक्ष्मी
तमिल री युवा कविता मांय खास नांव । बेगी ई पैलो कविता संग्रह सामीं आवण मांय है ।
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