आ कुबाण काठी लागगी लारै
बिचाळै सूं पाछो मुड़ी आवूं
हरेक दाण ।
हुवै सामनो भूलां सूं
अर टुकड़ा मांय मिली
कामयाबी रै साथै
जिका भेज्या हा पाछा
जूण-जातरा रा अखूट आखर ।
बारंबार आवूं-जावूं उण पछै ई
खाडा अर धोरां री
सैंध कीं काम कोनी आवै
सामीं ऊभा होय जावै रोड़ा दांईं
सायरै खातर बपरायोड़ा साधन ।
काच री भींत माथै
हाका करता मारै थाप्यां
मारग री खोज
गांठ्यां खोलता-खोलता
बधता जावै भेद
महीना अर बरसां बिचाळै
बेरहमी सूं
सोख लेवै दिनां मांय सूं निरांयति
तौफान रै चक्कारियै दांईं ले उडै ।
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सोबत
उजास नै ऊपर सूं थाम’र
सुरां नै संजोया राख्या
कर रिंधरोही रै कोल माथै पतियारो
घोसळो बणायो म्हैं ई ।
कदै-कदास लाग जावै
अणचाइजतो लांपो
तद चलार’र रिंधरोही
बुलावै मेह मामै नै, बरसावै सागीड़ो मेह
बुझा’र अगन करै निरभय ।
अंधारै रै सागै
पसर जावै सूनवाड़
इण ढाळै अमन-चैन रै माहौल मांय
खुद खुद री परखूं धार
छीणी री आवाज भेळै
लालच
रिंधरोही रै बारै
माडाणी करावतो रैवै- भटका ।
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अनुसिरजण : नीरज दइया
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तमिल कवयित्री : एस. मुत्तुलक्ष्मी
तमिल री युवा कविता मांय खास नांव । बेगी ई पैलो कविता संग्रह सामीं आवण मांय है ।
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