कविता मांय बतळावतां-बतळावतां
कविता मांय बतलावतां-बतळावतां
आबार अबार ही बै निकळग्या अठै सूं
आखी दुनिया नै उखण परा माथै माथै
माटी री खुसबू गंधावै
बां मांय कितरी कला है, कितरी समझदारी
कितरो चांकैसर सोच, कितरी लाग-लपेट
कितरो धीजो, कितरी अक्कल
कितरी संवेदना, कितरी कलाकारी
बां री कविता री कोपी मांय
कीं ठिकाणा हा किसाना रा
कीं तबेला दूधिया रा
कीं ठीहा हा जूता गांठणियां भाइयां रा
लुगाई री कोई फरमाइस ही
तो टाबरां री पेंसिल रो नांव
कूंट आळी चाय री दुकान माथली गप्प ही
जूण सूं आंती आयोड़ी हाका करती हार ही
तो घुप्प अंधारै मांय रळतै आंसुवां री कसक
जिका प्रकासकां कोनी छापी बां री पोथी
बां रो मोल-भाव हो
जिका मौके-बेमौके धिक्कारता रैवता हां :
फटकार रो सबद-सास्त्र हो
अखबारां मांय मिनखपणै री खुरचण रो
ताजो-ताजो दाखलो हो
तो फसलां सूं गायब हुंवती
हरियाळी रा
कीं हाल-चाल हा
बां मांयली माटी काढी
मन नै मथ परा
दुनिया नै उखण परा माथै
कविता रची ।
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रागळी
ठेठ सूं चाली आवै आ बात कै चांद सीतळ है
आ जुगा-जूनी आ बात कै चांद मांय दाग है
पण चांद मांय कविता जैड़ी एक रागळी है
चांद मांय फाग है
चांद मांय मौसमी राग है
चांद ही है जिण रै पाण आपां अंधारो सह सकां
चांद हाथ री चूड़ी, मतलब रात रो गैणो
चांद मन रै खुणै मांय उग्या तारां भेळै फिरणो है
रूपाळो चांद बायरै रै सागै-सागै
रैवणो है! बैवणो है!
खगोल-सास्त्र दावै भलाई जिंयां कैवो
साहित्य खगोल-सास्त्र रो उल्थो कोनी !!
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मोल लावो प्रीत-अपणायत
आज रै जमानै रो ढाळो है -
जिको बिक सकै, उण नै बेच देवो
अठै तांईं कै जिको बिकै
बो साहित्य बेच देवो, कला बेच देवो, खेल बेच देवो
जिको नीं बिक सकै
अर बिकण सूं मुकर जावै
उण नै एक्कैकानी कर देवो
करो उण रो तिरसकार
बिकणो ही जुग री जरूरत है
बाकी स्सौ कीं
अणचाइजतो बणग्यो है, टाळीजग्यो है
मोल लावो संवेदना
मोल लावो प्रीत-अपणायत
मोल लावो रिस्ता-नाता
बजार मांय ऊभा हो :
भूमंडलीकरण रै बजार मांय !
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अनुसिरजण : नीरज दइया
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भोजपुरी कवि : डॉ. रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव `परिचय दास’
भोजपुरीमें पाँच कविता-संग्रह- एक नया विन्यास (2004), पृथ्वि से रस लेके (2006), चारुता (2006), युगपत समीकरण में (2007), संसद भवन की छत पर खड़ा हो के (2007) रै अलावा केई पोथ्यां प्रकाशित । अबार हिंदी अकादमी रा सचिव।
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बिकणो ही जुग री जरूरत है.......अद्धभुत कवितांवां अ’र बीं स्यूं बढ़िया परिचय दास रे सिरजण रो परिचय करवावंतो अनुसिरजण रो अनुवाद.......आभार नीरज जी।
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