15 नवंबर, 2010

के. सच्चिदानंदन

कविता रो उल्थो
जूण पलटीजै
जियां मछी तिरै पाणी रै मांय-मांय
उल्थाकार दिमाग मांय तिरै, बो बैठै
झुक्योड़ो धूड़ माथै, हरेक सबद रै पाखती
हरेक सबद रो रंग परखतो
परखतो हरेक सबद रो नाद ।

कविता रो उल्थो है खथावळ मांय
माथो बदळणो, विक्रमादित्य री कथा दांई
उल्थाकार उखणै है बीजै कवि रो माथो
खुद री धड़ माथै
हरेक ओळी है एक मारग
एक मारग उफत्योड़ो
जुद्ध, दुख अर ऊब सूं ।

आ एक गळी है बाजती
जिण मांय घूमै अजर आदमी,
भगवान अर रूंख
जठै रुकै है एक ओळी,
खुलै है एक खाई
बठै परलोक सिधारी आत्मावां
तिरस बुझावण ढूकै
जिका इण पूजीजतै मारग माथै आवै
उभराणा पगां गाभा छोड़ नै
घाटी री हवा दांई बैवै
नागा अर लुळियोड़ा ।

एक दिन म्हैं सपनो दीठियो
म्हैं खुद री ई कविता रो उल्थो कर रैयो हो
खुद री ईज भाषा मांय

आपां सगळा उल्थो करां
हरेक कविता रो खुद री भाषा मांय
पछै करां झोड़
उण रै अरथ माथै
म्हारी दीठ सूं
बाबेल री मीनार कदैई नीं चिणीजैला ।
***

घर घणी रो गीत
धूड़, भाठा, काठ अर करजै सूं
म्हैं बणायो एक घर
बिरखा मांय धुड़ग्या धूड़-भाठा
ऊदई खायगी काठ समूळो
लारै रैयग्यो फगत करजो
अबै जीवूं हूं म्हैं
उण नै चुकावण खातर ।
***
अनुसिरजण : नीरज दइया


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मलयालम कवि : के सच्चिदानंदन; जलम : 26 मई, 1946
कविता संग्रै : मलयालम में 19 कविता-संग्रै अर केई पोथ्यां प्रकासित साहित्य अकादमी री पत्रिका 'इण्डियन लिटरेचर' रा सम्पादक रैया अर साहित्य अकादमी रै सचिव रूप मांय ई बरसां काम संभाळियो ।
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3 टिप्‍पणियां:

  1. भाई नीरज ,
    आप रो ओ काम भी हरमेस री भांत जोरदार ई नीं सरावणजोग भी है !
    आप मायड़ भाषा राजस्थानी अर राजस्थानी साहित री छिब बिस्तारण पैटै ओ निरवाळो काम कर रे’या हो !
    बधायजै !

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  2. नीरज जी....आश्चर्यजनक रूप से अध्भुत कार्य कर रहे हैं आप.. साहित्य-प्रेमी, सुधि-पाठक आपका ये अहसान भूल नहीं पाएंगे...मेरी शुभकामनाएं स्वीकार करें.

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  3. भाई नीरज जी!
    राजस्थानी में पूरे भारत की कविताएँ देख कर मज़ा आ गया। ये बड़ा काम है। ऐसा काम तो अभी तक हिन्दी में भी किसी एक व्यक्ति ने शुरू नहीं किया है। मुझे आपसे ईर्ष्या हो रही है। अद्भुत्त ।

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