14 नवंबर, 2010

गिरधर राठी

उखड़ियो नींद
साची वो कमती नीं हो
जिण सूं उखड़ी ही नींद ;
ना ईज ओ कमती है-
कै उखड़ियोड़ी नींद
सुपनो नीं बणाय सकै ।

अंधारै मांय
का रोसणी चास
जिको लखाव है
साची वो ईज कमती नीं है ।
पण नींद वा कांई नींद
जिकी घड़ नीं सकै सुपनां !
भासा वा कैड़ी भासा
जिकी कथ नीं सकै-
देखो !
***

सड़क माथै
कांई बा जोध-जवान थाकगी है
उण डोकरी रो हाथ पकड़िया-पकड़िया ?

का उण नै आवै है लाज जवानी में
बुढापै रै साथै ?

उमर रो हाथ पकड़ियां
कांई बा चालती ईज जावैला !
***

अटकळ
स्सौ कीं
छेकड़ खूट जावैला अटकळां मांय

थूं बायरै रै बैवण रो
मकसद नीं जाण सकै
अर ना ई
चाणचकै उदास हुवण रो

कोई फूल
सदीव सागी सागी रंग ई क्यूं ओढै ?
रगत
एकदम धोळो क्यूं नीं हुय जावै ?
रगत
एकदम धोळो…
रगत…
***

भव-भूति
मिनख हुवैला तो डील
हुवैला, तो
रंग हुवैला
दाय करूंला मन-पसंद ।

मिनख हुवैला तो हुवैला मन
पसंद
ना-पसंद ।
मिनख हुवैला तो भलै ई हुवैला
मिनख ।
***
अनुसिरजण : नीरज दइया


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हिंदी कवि : गिरधर राठी ; जलम : 1 अगस्त, 1944 
कविता संग्रै : बाहर भीतर, उनींदे की लोरी, निमित्त, अंत के संशय
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कवि श्री गिरधर राठी सूं म्हारी ओळखाण बरसां पैली भाई नवनीत पाण्डे रै घरै बां रै कविता-संग्रै बाहर भीतर बांच्यां हुई, पछै उनींदे की लोरी बांच्यां बै म्हारी पसंद रा ठावा कवि बणग्या । जद राठी जी समकालीन भरतीय साहित्य रा संपादक बण्या तो बां सूं कागदां रै मारफत बंतळ हुवती रैयी । बिंयां तो समकालीन भरतीय साहित्य रै अंकां मांय राजस्थानी नै ठौड़ बगत-बगत माथै मिलती रैयी ही, पण राजस्थानी रा कमती ई कवि-लेखक छपता हा । राठी जी रै संपादन मांय राजस्थानी नै एकठ छपण रो संजोग सध्यो । जोधपुर मांय कवि कथाकार मीठेस निरमोही रै संयोजन मांय राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति रै कथा-समारोह मांय हिंदी कविता जातरा मांय आपरी ठावी ठौड़ राखणिया कवि आलोचक  श्री गिरधर राठी सूं पैली बार परतख मिलण रो संजोग बण्यो । बठै आप सूं समकालीन भारतीय साहित्य अर खुद राठी जी रै सिरजण बाबत बंतळ हुई  । बिंयां तो हिंदी कविता मांय केई कवि पसंद रा है, अनुसिरजण पेटै आपां बां कवियां री कवितावां नै राजस्थानी मांय बांची नै आगै ई बांचाला । ऐ कवितावां "जागती जोत" मांय संपादक श्री भगवती लाल व्यास प्रकासित ई करी ही ।

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