29 नवंबर, 2010

प्रयाग शुक्ल

सबद
जिको हो सोच मांय
बो नीं रैयो
पूरो रो पूरो
सबद मांय ।

पण रैया सबद
ठिकाणो बतावता
उण सोच रो ।
***

मिनख अर पोथ्यां
उडीकै मिनख
कै कोई
बांचै बां नै !

रचै मिनख
पोथ्यां ।

उडीकै पोथ्यां ई
कै कोई
बांचै बां नै !!
***
अनुसिरजण : नीरज दइया


************************************************************************
हिंदी कवि : प्रयाग शुक्ल जलम : 28 मई, 1940
कविता संग्रै : कविता संभव (1976), यह एक दिन है (1980), रात का पेड़अधूरी चीज़ें तमाम (1987), यह जो हरा है (1990)  । कविकथाकार अर कला-समीक्षक रै रूप में आखै देस में चावो-ठावो नांव ।  1963-64 में 'कल्पना' (हैदराबाद) रै सम्पादक मंडल में रैया अर जनवरी 1969 सूं मार्च 1983 तांई 'दिनमानरै सम्पादकीय विभाग में काम करियां पछै दैनिक 'नवभारत टाइम्सरै सम्पादकीय विभाग में  केई बरसां काम करियो । आप ललित कला अकादमी री हिन्दी पत्रिका 'समकालीन कलारा अतिथि सम्पादक ई रैया 
************************************************************************

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें