29 नवंबर, 2010

जयंत पाठक

भार
छै जद मरियोड़ो म्हारो डील
तिर परो कांठै आयो
तद समझ्यो कै जिको भार लागतो हो
बो डील रो नीं
सांस रो हो !
***

नानकियै री कविता
नानकियै रै हाथां कागद माथै मांडियोड़ी
आडी-टेढी लीकां बिच्चै
म्हैं विगतवार सबदां मांय
कविता रचण ढूकूं ।

तद कैवै आनंदवर्धन
फेरतो चोटी माथै हाथ-
काव्यस्य आत्मा ध्वनि ।
कवि मैक्लीश, पाइप सूं उठतै
धूंवै रै आखरां मांय कैवै-
ए पाइम शुड नॉट मीन बट बी…

म्हैं
नानकड़ै रै हाथां कगद माथै मंडियोड़ी
आडी-टेडी लीकां देख
कविता रचण री बात बिसराय देवूं ।
कविता सूं व्हाली तो नानकियै री
खैंच्योड़ी ऐ आडी-टेडी लीकां ईज है ।
***

छोरी परणायां पछै, घर मांय
छेकड़ फेरां री रात आई-गई
ब्यांव हुयग्यो ।
मा अबै
घर रै समान री गिणती करै
चेतो राखती जिनसं मिलावै
संभाळ-संभाळर राखै बां नै ।
थाळियां, कटोरियां, गिलासां, प्लेटियां
स्सौ कीं ठीक है
कठैई कीं गुमियो कोनी
कीं रुळियो कोनी ।

पण
चानचकै कीं छेतै आवतां ई
बा कमरै रै बिच्चै
ऊभी हुय जावै
आंख्यां सूं टप-टप ढुळण लागै
खारो-खारो सवाल-
म्हारी छोरी कठै ?
***
अनुसिरजण : नीरज दइया


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गुजराती कवि : डॉ जयंत पाठक 
जलम : 20 अक्टूबर, 1920 सरगवास : 1 सितम्बर, 2003
कविता संग्रै : गुजराती में कविता संग्रै 'अनुनय' खातर साहित्य अकादेमी पुरस्कार (1980) सूं सम्मानित । चावा ठावा कवि, संस्मरणलेखक, निबंधकार, अनुवादक अर संपादक रूप पाठक जी आखी उमर काम करियो । डॉ जयंत पाठक स्कूल, कॉलेज में मास्टरी पछै पत्रकारिता सीगै ई काम करियो । आपरा पोथ्यां है- ‘मर्मर’, ‘संकेत’, ‘विस्मय’, ‘अंतरीक्ष’, ‘अनुनय’, ‘मृगया’, ‘शूळी उपर सेज’, ‘बे अक्षर आनन्दना’ अर ‘द्रुतविलंबित’ (कविता संग्रै) ; समावेश थाय छे. ‘क्षणोमां जीवुं छुं’ (1997) सूं आपरी 1997 तांई री समूळी कविता-जातरा नै देख सकां ।  
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