14 नवंबर, 2010

निदा फाजली

एक जवान ओळूं
बगत परवाण
म्हारै केसां चांदी रळगी
अठी-उठी जावण री आदत ई ढळगी
आरसी जिकी कैवै
साची ई कैवै
एक जैड़ो चैरो किण रो रैवै
इण बदळतै बगत
धोरां री धरती पण
कठैई किणी घर मांय
एक छोरी ऐड़ी है
बरसां पैली जैड़ी ही बा
अजै ई वा वैड़ी है !
***

अरदास
असमानी आभै बैठिया
कद तांई
चांद-तारां सूं झांकोला
परबत री ऊंची चोटी सूं
कद तांई
दुनिया नै निरखोला
पूजीजती पोथ्यां मांय
कद तांई
करोला अराम
म्हारो छप्पर टपकै
सूरज बण नै
इण घर नै सुखावो
पींदै बैठियो पींपो
बण नै कणक
इण मांय आवो
मा सा रो चसमो तूटग्यो
बण नै काच
इण मांय लागो
गूंगा हुयोड़ा है आंगणै मांय टाबर
बण नै दड़ी
आंनै रमावो
सिंझ्यां हुयगी चांद उगावो
पेड़ हिलावो
बयारो बैवाबो

काम घणा है
सायैरो लगावो अल्ला मियां
म्हारलै घरै पण आय जावो नीं
अल्ला मियां …।
***

दस दूहा
(1)
चक्कू  काटै बांस  नै,  बंसी  खोलै  भेद ।
उतरा ई सुर जाणजै, जितरा जिण में छेद ॥
(2)
आखै जीवन भटकिया, खुली ना मन री गांठ ।
उण रो मारग छोड़ नै,  बीं  री  जोई   बाट ॥
(3)
नदियां सींचै खेत नै, सूवो कुतरै आम ।
सूरज ठेकैदार-सो, बांटै  सै  नै  काम ॥
(4)
म्हारै जैड़ो आदमी,  म्हारो ई है नांव ।
ऊंधी-सूंधी बो करै, करै म्हनै बदनाम ॥
(5)
बूढो पीपळ पाळ रो, बतळावै दिन-रात ।
जिको हेठ कर नीकळै,  माथै फेरै हाथ ॥
(6)
म्हैं अर थूं हां जातरी, आवै-जावै रेल ।
ऐकूकै रै गांव लग, आपस रो है मेळ ॥
(7)
घर नै जोवां रात-दिन,  लाधै  कोनी ठांव ।
बो मारग ई भूलग्यो, जिण मारग हो गांव ॥
(8)
सगळी पूजा एक-सी,  न्यारी-न्यारी रीत ।
मसजिद जावै मोलवी, कोयल गावै गीत ॥
(9)
दुख री नगरी कौणसी, आंसू री के जात ।
सगळा तारा दूर-दूर,  सगळा छोटा हाथ ॥
(10)
एक पालणै  प्रीत  रख,  दूजै  में  संसार ।
तोल्यां ई ठा लागसी, किण में कितरो भार ॥
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अनुसिरजण : नीरज दइया


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कवि : निदा फाजली ; 12 अक्टूबर, 1938 / 08 फरवरी 2016
कविता संग्रै : आँखों भर आकाश, मौसम आते जाते हैं, खोया हुआ सा कुछलफ़्ज़ों के फूल, मोर नाच, आँख और ख़्वाब के दरमियाँसफ़र में धूप तो होगी ; 1998 रै साहित्य अकादमी पुरस्कार सूं सम्मानित
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कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता, कहीं जमीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता इण ओळी रै मारफत एक गीतकार रै रूप निदा फाजली सूं म्हारी ओळख रै पछै या पैली दूरदर्शन रै कवि-सम्मेलनां रै संचालन करता बां रा दरसण करिया । दरसण इण खातर कै किणी संत दांई फाजली जी ई कथ सकै- घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें, किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए । उर्दू कविता मांय गालिब अर मीर किण नै पसंद कोनी, आधुनिक कविता ई घणी लांठी है । पण जिकी बात आपरी शायरी में निदा फाजली कैयी बा बेजोड़ नै निरवाळी है । आँखों भर आकाश  देवनागरी में निदा फ़ाज़ली रो एक संकलन है जिण मांय बां री सोच-समझ अर सरोकार खुद कवि रै संचै सूं सामीं आया । ओ बां री प्रतिनिधि कवितावां रो संग्रै है ।  अठै बां री घणी तारीफ रो सांच आप तांई इण दूहै रै मारफत म्हनै पतियारो है कै मतै ई पूग जावैला । वो सूफ़ी का क़ौल हो या पण्डित का ज्ञान, जितनी बीते आप पर उतना ही सच मान ।

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