15 नवंबर, 2010

अमृता प्रीतम

म्हारो ठिकाणो
आज म्हैं म्हारै घर रा
मिटाया है नम्बर
अर हटायो है
गळी रै माथै लटकतो
गळी रो नांव
अर द्योड़या है ऐनाण-सैनाण
हरेक सड़क री दिसा रा
पण जे म्हनै पावणो है-
पक्कायत ही
तो हरेक देस रै
हरेक शहर री
हरेक गळी रो खड़खड़ाओ आडो

ओ एक सराप है
एक वरदान है
अर जठै ई थानै पड़ै भळको-
आजाद आत्मा रो
- जाणजो बो ई है
म्हारो घर ।
***

अमृता प्रीतम
एक दरद हो -
जिको म्हैं पीयो
चुपचाप सीगरेट दांई

फगत कीं नजमां है -
जिकी म्हैं झाड़ी
सिगरेट सूं राख दांई …
***

खाली जागा
हा फगत दोय रजवाड़ा
एक उखाड़ करियो बारै
म्हनै अर उण नै
अर दूजै नै
करियो हो छिटकाय न्यारो
म्हां दोनूं ।

उघाड़ै आभै हेठै
म्हैं कितरी ईज ताळ
भीजती रैयी
डील रै मेह मांय
बो कितरी ई ताळ
गळतो रैयो
डील रै मेह मांय
फेर बरसां रै मोह नै
गिट परो एक जैर दांई
उण धूजतै हाथां सूं
झाल्यो म्हारो हाथ
चाल ! बगत रै छाती माथै
बणावां दोनूं एक छात
बो देख !
दूर सामीं, बठीनै
सांच अर कूड रै बिचाळै
कीं जागां खाली है ……
***
अनुसिरजण : नीरज दइया
कागद अर कैनवास / अनुवाद / नीरज दइया
कागद अर कैनवास / आवरण : इमरोज
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पंजाबी कवयित्री : अमृता प्रीतम ; 
जलम : 31 अगस्त 1919,  सरगवास 31 अक्तूबर 2005
कविता संग्रै : रै अलावा केई केई पोथ्यां प्रकासित । बरस 1957 रै साहित्य अकादमी पुरस्कार अर भारत रै सर्वोच्च साहित्त्यिक पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार सूं कागज ते कैनवास पोथी सारू सम्मानित ।  
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