23 मई, 2011

के. वी. तिरुमळेश


बेनामी जिनसां
बेनामी जिनसा दीसी तो
बां रै नांव खातर भटकता
बेनामी नै ओळखणो
ओळख परो बकारणो
आपां बेबस हुवां ।

’साने’ आपरी आत्मकथा मांय लिखै-
दुनिया री सगळी जिनसां
आपरो नांव मांगती थकी
जाणै म्हारै पाखती आवती लखावै
नांव देवण रै मिस
लागै सगळा नै भाषा
कै जे आ नीं हुवै तो म्हैं नीं लिखतो ।

डोळी रै उण पार महकै-
रोही रा फूल
रोजीना बां नै चूंट-चूंट
घरै जावै कोई एक जणी
म्हारै कमरै मांय
नांव भूल्यां बैठो म्हैं
बां नै किण ढाळै बकारूं ?
रात नै एक नींद लेय’र उठ्या पछै
बै अळसायोड़ा लाधैला ।
***

अंधारो-उजाळो
काळती मिनकी धोलती मिनकी नै कैयो-
थारै धोळीकी रै मौज है
लोग थनै हेत सूं राखै
खोळै मांय बैठावै-रमावै
थारै म्याऊं करण री जेज है
कै सामीं दूध सूं भरीयोड़ी बाटकी हाजर ।

तद धोळती मिनकी बोली-
थूं काळती हुवण रै कारण ई’ज
दिन बिसूंज्यां किणी नै कोनी दीसै
अंधारै मांय बण अंधारो भटका करै
इणी खातर तो
थनै देखतां ई लात मारण री इच्छया हुवै ।
***

तरीको
कैयो कोनी हो कांईं म्हैं
बो रैवै है इंयां ई’ज
उण नै मत छेड़ो

बो कोई गैलसफो का महामूरख कोनी
उण रो प्रेम रै भोळावै मांय
माथो चकीजैड़ो ई कोनी
घर-परिवार मांय कोई ऐड़ी ओळ ई नीं
कै बीं रै बाप-दादावां मांय
कोई हुयो हुवै इस्सो
उण नै आपरी दुनिया मांय छोड़्यां
कीं नीं करै बो किणी रै ।

बीं री बातां गाळ सरीखी लाग सकै थांनै
उणां रो ढंग-ढाळो ई न्यारो-निरवाळो
छंदां नै किणी फळ दांईं अरोगै
भाठा दांईं बगावै
चौपाळ मांय बैठ’र ओळ्‌यां नै
डोरां दांईं बणावतो थको
बीड़ी रै धूवै दांईं फूंकै
अरथ रा केई केई बादळां नै ।

देस-दिसावर री घुमाई ई’ज नीं करी
बिहार, बंगाल, उडीस
काशमीर, हिमाचळ प्रदेश,
पंजाब, गुजरात, मराठा
कठै’ई कोनी गयो बो
बेलची, भोपाल, भागलपुर
मीनाक्षीपुर, कामाठीपुर, तिरुवनंतपुर
च्यार मीनार, कुतुबमीनार, श्रवण बेलगोल
राजघाट, तालीकोटे, जलियावाला बाग
देख्यो ई कोनी कदैई
गांधी, नेहरू, पटेल, जिन्ना
शेख अब्दुल्ला, इंदिरा गांधी, संजय गांधी
फूलन देवी, हाजी मस्तान
मोरारजी देसाई, क्रांति देसाई, वाजपेयी
अकबर, अशोक, तुगलक
चरणसिंह, स्वर्णसिंह, भिंडरवाला
राज नारायण, अमजद खान
खान अब्दुलगप्फार खान
किणी नै देख्यो कोनी
फेर ई उणा रै कैयोड़ै मांय कूड़ कोनी
सगळी जागावां गयोड़ो है बो
स्सौ की जाणै देख्योड़ो है बो
सगळा नै सावळ ओलखै !

कोई मानै भलाई ना मानै
बो खुद नै महात्मा गांधी समझ’र
बुसट खोल’र बगावतो थको
कैवै- डांडी जातर माथै निकळसूं
टुर परो जा पूग्यो कुंबल तांई
बो ठाह नीं कितरी बार
अन्न-जळ छोड़ नै बरतियो बण सूयग्यो हो
गांधी हत्या रै दिन समझायो कै नीं रैया गांधी
पछै जद नाथूराम गोडसे नै फांसी हुई
ऊभो हो अठै’ई भूण नीची घाल्या ।

खून, लूट-खसोट, अत्याचार, अहिंसा
अकाळ, बीमारी, महाजुद्ध
सगळा आप आप रै तरीकै मुजब चालै
बो भरी दौपारी टकटकी बांध्या
आंख्या फाड़तो सूरज अगाड़ी ऊभो रैवै
किणी सांच नै जाणै उडीकतो हुवै
पण बताओ रो सरी-
कुण-सो देस दोय-दोय सूरज साजैला ?
ओ अबार सूं ई’ज लखण रो लाडो
आंधो हुवण लाग रैयो है ।
***

अनुसिरजण : नीरज दइया

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कन्न्ड़ कवि : के. वी. तिरुमळेश जलम : 1940 हैदराबाद
केई मौलिक नै अनुवाद रा कविता संगै प्रकाशित अर पुरस्कृत । अंगेजी भाषा रा लूंठा जाणीकार प्रो. के. वी. तिरुमळेश विश्व कविता नै आपरी भाषा कन्नड़ मांय अनुवाद रै जरियै पूगाई अर साहित्यशास्त्र रै केई गूढ विषयां माथै सांतरा निबंध ई लिख्या नै चावा हुया ।
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