15 मई, 2011

वसंत जोशी


म्हारो कच्छ

पिछाणूं म्हैं
इण धरा री माटी नै
कीं कोनी उपजै अठै
कोनी कोरो मरुस्थळ
है इण रै मैहकण री
मधरी मधरी चाल
जियां बंद मुट्ठी मांय सूं
सरकै बगत
निरायंती सूं
होळै-होळै

तरेड़ा कोनी पड़ै
अकाळ सूं आंती आया चैरां माथै
पसैवै मांय झोबा-झोळ देही
जाणै झरै
बबूल री छियां हेठै
इतै उपरांत ई
अजेस बाकी है
मूड़ै माथै मुळक

म्हैं ओळखूं
इण माटी नै
कोनी डील-डोळ सूं
फूटरी अर रूपाळी काया
पण पाणीदार आंख्यां लारै
जाणै मुळक बांटै-
ठंडी गुलाबी रात्यां
  
झरुटियां कोनी भर सकां
आं आंगळियां सूं
पतळी परत
पण पतळी कोनी पड़त तरेड़ा री
रण अनै रत्नाकर
मुट्ठी’क लहरां
जे इण नै
जरा-सी लेवां सूंध
पूगै सीधी काळजै
आ माटी
परस कर्‌यां
सरक’र म्हारै मांय ढूकै
अर तूठै आपरै मांयला मोती

म्हैं चाखी है
इण माटी नै
आ सिकती लाय मांय
भूख नै ई’ज सेक’र खायगी
हड़हड़ावती हंसी रै सागै


अणमाप हरखीजै
आ माटी
कदै-कदास बिरखा सूं
तो कदै-कदास
म्हारै परस सूं
***

अनुसिरजण : नीरज दइया


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गुजराती कवि : वसंत जोशी 
काव्य सग्रै : क्षितिकर्ष कविता संकलन घणो चावो रैयो। केई कवितावां रा बीजी भारतीय भाषावां मांय अनुवाद। आबार आप आकाशवाणी राजकोट गुजरात मांय कार्यक्रम अधिकारी।
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