दोय नेपाली कवितावां
मूळ कवि - वीरभद्र कार्कीढोली
उलथो - नीरज दइया
फेर थां तांई
आय पूग्यो हूं थां तांई
फेर उणी ठौड़, फेर
जुगा जूनी रीत अपणायत री
जिकी सिंझ्या, जिण रात
भाग्यो हो, फेर बठैई
बठैई मुखोळ, चित्रकार, पेंटर
परिकल्पना, ठियो उडारी
उण दुखदाई हालतां भंवतां
भोगता म्हैं
काढी सदियां री सदियां। अहो!
म्हारो गांव
गांव मांय ई रैया करै बो
इण बगत सागै थांरै, थांरै नजीक
होवै बो। इयां ई कदैई कदैई
कैड़ो बगत हो बो म्हारै खातर
आय पूग्यो हूं फेर
थां तांई, उणी बगत।
भाग्यो हो जठै सूं
ठाह हुवैला थांनै ई।
आय पूग्यो हूं फेर
म्हारी हथेळियां चाइजै म्हनै इण बगत
जुगा जूनो अंतस सूं रिस्तो है थां सूं
इणी खातर सायत आय पूग्यो हूं
फेर थां तांई।
०००
दाय है इणी खातर
दाय है इणी खातर म्हनै
कीं है, स्सौ कीं कोनी
जिया जूण दाय है इणी खातर
सुण्यो हुवैला ओ ई थूं
कंगला नागा-उघाड़ा घर ई दाय है म्हनै।
सावळ जीया जूण जीवण री चावना
कोनी बणावै रिस्तो
आवारा बैवतो आंसु ई कदैई-कदैई
बिना कसूर रै बैवै है बो
जाणै फगत काळजो ई...
फेर आवूंला म्हैं
अेकलो फगत अेकलो
उजास कानी
तद आवूंला म्हैं अंधारै सूं।
किणी दिन छानैमानै
पक्कायत ई आवैला थूं ई।
इण दफै पण
कोनी म्हारै पाखती
थारै दाय पड़ता बै रंग
पण धरती जैड़ी अेक छाती है
अंवेर’र राख्योड़ी म्हारै पाखती थारै वास्तै।
कीं है, स्सौ कीं कोनी
जिया जूण दाय है इणी खातर
किण दिन आवैला थूं
इणी खातर कंगला नागा-उघाड़ा घर
खास दाय है म्हनै।
००००
उलथो - नीरज दइया
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कवि परिचै - वीरभद्र कार्कीढोली
5 मई, 1964 नै सिक्किम में जलम।
चावी पोथ्यां - कविता संग्रै : निर्माण यो मोड़सम्मको, आभास, कविता पर्खिअेर आधारातसम्म, अेक मुटठी कविता, शब्द र मन, अक्षरहरुको यात्राम, समाधि अक्षरहरू,
ध्वनि-अन्तर्ध्वनि ; कहाणी-संग्रै : शब्दमा मनका आवेगहरू अर समय र रागहरू ; संमरण : समिझअेर उनीहरूलाई आद। पोथ्यां रो केई भासावां में अनुसिरजण हुयो। हिंदी में- तुमने जीवन तो दिया..., शब्दों का कोहरा, समाधिस्थ अक्षर आद। प्रक्रिया, प्रथा, स्थापना, होम्रो पीढ़ी जैड़ी चावी पत्रिकावां रै संपादन सूं जुड़ाव। साहित्यश्री नेशनल अवार्ड,
अन्तरराष्ट्रीय भाषा साहित्य विशिष्ट सम्मान, अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी सार्क सम्मान, राष्ट्र गौरव सम्मान, निराला साहित्य गौरव सम्मान आद केई नामी पुरस्कारां सूं आदरीज्या थका साहित्यकार।
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