हिंदी साहित्य मांय सुधीर सक्सेना चावै-ठावै कवि रै अलावा संपादक अर लूंठै अनुवाद रूप ई ओळखीजै। आपरो जलम लखनऊ मांय 30 सितंबर 1955 नै हुयो। चावी काव्य-पोथ्यां- बहुत दिनों के बाद (1990), काल को भी नहीं पता (1997), समरकंद में बाबर (1997), ईश्वर हाँ, नहीं... तो (2013) आद। रूसी, पोलिश अर ब्राजीली भाषा रै घणा कवियां री कवितावां रो आप हिंदी अनुवाद करियो। रूस रै चावै 'पूश्किन पुरस्कार' रै अलावा कविता खातर 'वागीश्वरी पुरस्कार' अर 'सोमदत्त पुरस्कार' मिल्योड़ा। कवितावां रा देस-विदेस री केई भाषावां में अनुवाद हुयोड़ा। आं दिनां “दुनिया इन दिनों” (पाक्षिक) पत्रिका रा प्रधान संपादक । ई-ठिकाणो : sudhirsaxena54@gmail.com
प्रेम
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संसार मांय
जुगां-जुगां पैली
पैल-पोत हो
फगत प्रेम
संसार रै
सेवट मांय
फगत हुवैला
प्रेम
दोनूं
कांठां बिचाळै
थिर ऊभो
निजर
आवूंला म्हैं
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सरत
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मोमाख्यां
रै छत्तै मांय
हाथ घाल’र
अर जान
जोखम मांय न्हाख’र
लायो हूं
घणो सारो सैत
पण एक सरत
है
सैत रै
बदळै मांय
थांनै
देवणो पड़ेला
थारो सगळो
लूण।
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थांरी डोळी माथै
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आभै मांय
उडूंला एक
दिन
किन्नो
बण’र
कटण खातर।
कटूंला
अर आय
ढूकसूं
आखै जमानै
नै अंगूठो बतावतो
थारी बाखळ
री डोळी माथै।
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लूण
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बजार मांय
आपां रै देखतां देखतां
गायब हुयग्या
है लूण रा ढगळिया
अर बां री
जागा परसगी है-
पिस्यै लूण
री थेलियां,
देखण मांय
अबै लूण लूण कोनी लखावै
लखावै जाणै
हुवै गाभा धोवण आळो पोडर बेमिसाल
सरकारी
इस्तहारां नै देखां
तो बठै ई
हाजर कोनी लूण
मोटै सहरां
अर राजधानियां री ई बात कोनी
आं दिनां
तो हरेक ठौड़
जे बारा
पोइंट मांय लिख्योड़ो हुवै “नमक”
तो बड़ा-बड़ा
आखरा मांय
मार्का दाई
सदा भेळै टंगयोड़ो दिसै आयोडीन ।
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यूरेका
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जे पाणी
मांय छपाक सूं
नीं कूदतो
आर्कीमिडीज
तो कुण
कूकतो
एथेन्स री
सड़कां माथै-
यूरेका...यूरेका....
लोग साचाणी
बिसरग्या हुवतां
आर्कीमिडीज
नै
गीरबो
हुवणो चाइजै
हरेक
आर्कीमिडीज माथै
जिण सोध्यो
अर लाधग्यो
नफरत करो
उण सूं
जिका मार
न्हाख्यो
खुद रै
मांयलै आर्कीमिडीज नै
अर तरस
खावो उण माथै
जिको बंद
कमरै मांय का सडकां माथै
कदैई आपो
बिसराय’र नीं बोल्यो-
यूरेका...
यूरेका....!
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अनुवाद : नीरज दइया
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