दस क्षणिकावां
(1)
जिका कोनी जुड़िया जमीन सूं कदैई
बै ई बणग्या जमीनां रा घणी !
(2)
जेठ
रै मझ तावड़ै
फाटग्यो
हो आभै जाणै ज्वालामुखी
बो तो
कवच हो परसेवै रो
जिण
सूं म्हैं चालतो रैयो अणथक मजल पासी।
(3)
भूमण्डलीकरण रै रथ सवार पूंजी
बाजार री धजा
विज्ञापन रा बाण
अर निसाणै माथै
आम आदमी रा सपनां।
आम आदमी रा सपनां।
(4)
दुनिया रो भलो माणस
रोटी खातर लड़तो-लड़तो
बणग्यो सगळा सूं भूंडो।
(5)
हटावतां ई भाखर
उठ ऊभ हुयगी
कदैई सूं दब्योड़ी दूब।
(6)
मारो म्हनै आजो-आज
पड़ैला घणो भारी
जे करोला किसतां में म्हारो कतल।
(7)
बोलण रो तो कांई
कारण तो हुया करै असली
नीं बोलण रो।
(8)
जोवूं म्हैं
कद सूं बा लाय
राख कर देवै
दूजा नै जिकी।
(9)
भूसै गंडक सांझ पड़ी रो
बस्ती जागी
आधी रात गयां।
(10)
आयो जमानो ओ किसो’क
ना हंस सकां हंसण दांई
ना रोय सका रोवण दांई !
ooo
अनुवाद- नीरज दइया
अनुवाद- नीरज दइया
कवि परिचै
:
01 मई1952 नै बामनवास (सवाई माधोपुर) में जलम।
चावी पोथ्यां- हाँ, चाँद मेरा है, सुबह
के इन्तज़ार में, रोया नहीं था यक्ष (काव्य-संग्रै), 'धूणी
तपे तीर' (उपन्यास) आद । आदिवासियां माथै खास काम। राजस्थान
साहित्य अकादमी रो सर्वोच्च ’मीरा पुरस्कार’, केन्द्रीय हिंदी संस्थान सूं महापंडित राहुल सम्मान, बिहारी पुरस्कार अर
बीजा केई मान-सम्मान। सेवानिवृत पुलिस महानिरीक्षक।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें