कवि परिचै- हिंदी रा ख्यातनाम
कवि-आलोचक अर संपादक लीलाधर मंडलोई रो
जलम जन्माष्टमी 1953 नैं गुढी (छिंदवाड़ा)
मध्यप्रदेश में हुयौ। चावी पोथ्यां- अेक बहुत कोमल तान, रात-बिरात, मगर अेक आवाज, देखा-अदेखा, क्षमायाचना, लिखे में दुक्ख, काल बांका तिरछा, मनवा बेपरवाह, दिल का किस्सा, अर्थ जल, दाना-पानी, कविता का तिर्यक, कविता के सौ बरस आद। केई
मान-सम्मान अर पुरस्कार जिण मांय खास है- पुश्किन, शमशेर, नागार्जुन, रज़ा, रामविलास शर्मा (सगळा कविता खातर), कृति सम्मान, साहित्यकार सम्मान
(दिल्ली राजधानी, साहित्य अकादमी) आद।
दूरदर्शन रा महानिदेशक रैया मंडलोई अबार भारतीय ज्ञानपीठ रा निदेशक अर ज्ञानोदय
मासिक पत्रिका रा संपादक है।
ठिकाणो- 166 दूसरी मंजिल, कैलाश हिल्स, नवी दिल्ली-65 मोबाइल- 9818291188
ई मेल- leeladharmandloi@gmail.com
भासा-1
म्हैं लिखूं
उण भासा में
जिकी
ओळखै म्हनै।
००
भासा-2
जिकी भासा सपनां
रै साथै-साथै चालै
जियां काल देख्यो
म्हैं सपनौ
बरसै ही लाय आभै
सूं
आज म्हारी भासा ओ
बिरवौ लगावै।
००
भासा-3
ऊदई रो घर
कमाल रो रूपाळौ
पण कित्तौ अबखौ
रचू खुद री कविता
दीमक री भासा
मांय।
००
फूल
कदैई जिकौ कैयौ
हुवैला-
हाडका नै फूल
उण ई’ज देख्यो हुवैला-
मिनख मांयलौ फूल।
००
सूरज री सीध में
कान है पण कान
कोनी देवै
हाथ है पण हाथ
कोनी देवै
आंख है पण आंख
कोनी देवै
मन है पण मन कोनी
देवै
काम माथै जावती
छोरी
जावै काम माथै
सूरज री सीध
मांय।
००
बिना किणी कवि रै
घणौ अबखौ हुवै
कविता मांय
जीसा नैं
जियां रा जियां ई
लिखणौ
लिखूं जद
अेक सबद- जीसा
म्हारा चाळीस बरस
पड़ जावै ओछा
जीसा री छिंया
जीसा रो हेत
जीसा री मौत
कोनी उतर सकै
कविता मांय सागण
ढाळै
जीसा कवि रै मांय
है
जियां रा जियां
पूरण हा जिण ढाळै
बै
म्हारौ अंतस
भरियौ-पूरौ
जीसा सूं
जीसा खुद अेक
मुकम्मल कविता हुवै
बिना किणी कवि रै
मांड्यां।
००
मंतर
घणी कामेड़ी हुवै
मौमाख्यां
फूलां सूं पराग
अर मकरंद करै
भेळौ
खुद री टांगां
बिच्चै बणी
उण टोकरी मांय
जिकी दीसै कोनी
मौमाख्यां तैयार
करै है सैत
अर करै रूखाळी
बारलै हमलै सूं
उण री
अलेखू दुसमियां
बिचाळै धिर्योड़ा हां आपां
अर रूखाळी ई कोनी
कर सकां
आपां मौमाख्यां
सूं सीख्यौ कोनी ओ मंतर।
००
कपाल-किरिया
मा री चिता
बस चटकती लकडियां
री गूंज ही
बगत हुयग्यौ हो
पंडित जी कैयौ
‘कपाल किरिया’
अर झला दियौ अेक
बेडोळौ लंबौ मोटौ बांसड़ौ
ठाह नीं कांई
हुयौ
म्हैं झाल लियौ
भाई रो हाथ
अर बोल्यौ चाणचक
‘जरा’क हळकै हाथ सूं’
अर मींच ली
आंख्यां
००
जातरा
अेक लोटौ
अेक डोरी
अेक अंगोछौ
अेक कांबळ
अेक पोटळी
अर अेक डांग
अब कोई पण जातर
दौरी कोनी।
००
लड़ू तो हूं पण
लड़ू तो हूं पण
पूरी तरै लड़ण री
गत मांय कोनी
जीवूं तो हूं पण
पूरी तरै जीवण री
गत मांय कोनी
मरूं तो हूं पण
पूरी तरै मरण री
गत मांय कोनी
मा जीवै अर अबै
चालीजै कोनी
अर परिवार...
माफी चावूं
म्हारै पाखती दूजौ मारग कोनी
थोड़ा’क भळै उडीकौ।
००
लाय
भिड़ै- सबद सूं
सबद
म्हारी मेज माथै
अेक चिणखी-सी उठै
अर कविता लाय
दांई
पसर जावै
लाय नीं तो कविता
क्यांरी...
म्हैं देवूंला
हिसाब
म्हैं देवूंला
हिसाब
खुदरी मूरखता, हेकड़ी, घमंड अर लोभ रो
म्हारै ऊंडै
बसियौ हो कोई सक
जिण माथै म्हैं
करतौ रैयौ अणूतौ पतियारौ
म्हैं मरणौ कोनी
चावतौ हो उण रै हाथां
जद कै जीवणौ
थांरै भेळै कितरौ अबखौ
आ अेक सीधी-सरल
बात है कै
थे कोनी चावौ
म्हनै
म्हारै खातर का
डूब मरण री बात
जद कै थे म्हारा
इत्ता खास
म्हैं अबोलौ हूं
अेक रूंख दांई
इण रो मतलब ओ
कोनी कै
म्हैं कोनी हुय
सकूं थांरै दांई
हुवणौ थांरै दांई
डूब मरै जैड़ी बात हुवैला।
००
जीवन बाबत
सगळी तजबीज
कर्यां ई
धरती सूं पचै
कोनी
नामुदार
प्लास्टिक
अर अबै परमाणु
कचरै रै स्वाागत मांय
कित्तौ कसमसीजै ओ
राज
कूंपळां अर फूलां
रो तो कैवणौ ई कांई
छोटिया टाबरां रै
जीवण बाबत
सोचणौ कद बंद
हुयौ
००
पाव ब्रेड री बात
जद कै बा रो रैयी
है
म्हैं कोनी
करूंला पाव ब्रेड री बात
मा दोय दिन जूनी
रोटियां रै
बासी सूख्योड़ै
टुकड़ा नैं
गिला करैला गुड़
रै पाणी मांय
अर उडीकैला कै
बावड़ जावै
बासी सूखा टुकड़ा
सूं
जरा’क पीलपीलौ लखाव पाव ब्रेड रो
निजरा लुकोवतौ
भाळतौ रैसूं मा भेळै
लुगाई री बापड़ी
आंख्यां में
म्हैं दर ई कोनी
करूंला
पाव ब्रेड
री बात
म्हारी जेब सूं
साव परबारी है
ओ है महीनै रो
छेहलौ दिन
००
कार्बन मोनोऑक्साइड
कठै सूं आवै
इत्ती
कार्बन
मोनोऑक्साइड
कै बरफ पिघळै
बगत सूं पैली
धंसकै डूंगर
होळै-होळै
होळै-होळै खूटै जीवण।
००
गद्य कवितावां
कै लूण रोटियां मांय
दिनूगै-सिंझ्या.....
समदर सूं उठै धोळौ धप्प धूंवौ.... पण समदर सूं कोनी आवै खांसता-खांसता बेदम हुवण
वाळा री अवाजां... अबकी दाण मा सूं कैवूंला कै चाल परी म्हारै साथै अर पो परी देख
रोटियां कै जठै धूंवौ हुया करै अणथाग पण कोनी हुवै ऊंडै तांई हिला देवण वाळी
खांसी.... मा जद पोसी रोटियां वां मांय समदर रो सुवाद हुवैला अर कित्तौ किफायती अर
स्वादू हुसी रोटियां रो पोणौ। कै लूण रोटियां मांय मत्तै ई पूगैला...
समदर माथै खासां
आपां जद रोटियां... पूगैला सुवाद ई आपी-आप मांय रो मांय अर आपां सुवाद रा समदर हुय
जासां अेक दिन ....... अेक दिन ........
००
हत्यारा उतरग्या क्षीरसागर मांय
(अेक)
म्हैं हमेस सकून
री नींद लेवतौ। अर अबै जागूं जाणै नींद मांय। डरावणा सुपनां मांय डूब्योड़ी है
रातां। म्हैं हत्यारां नै देखूं सुपनां मांय। बां रा चैरा अडोळा दीसै कोनी। बस बां
रौ हुवणौ मैसूस करू जाणकारां जिसौ। बै चैरा-मौरां सूं तौ चोखै घरां रा खावता-पीवता
दीखै। बां पाखती जोरदार मोटर-कारां है। बै अमूमन मोटी-मोटी कोठ्यां सूं निकळ’र आवै। बां रै लारै चालणियां री जमात है। जिका नवी-नवी
सकलां मांय हरेक ठौड़ हाजिर हुवै। बै हथिहारां सूं सज्या-धज्या। बां री आत्मा रौ
पाणी सूखग्यौ। कारण कै बै रिपियां रै जोर सूं उण हरेक जिनस नै खरीदण नै आमादा है
जिण मांय पाणी हुवै। अर राज खुद आपरै ढंग-ढाळै लागै इण बौपार मांय हत्यारां रौ
साखी बणग्यौ। म्हारै इण सुपनै में जिकौ बिना किणी स्टिंग ऑपरेशन रै सूझ रैयौ है, म्हनै कंठां तांई डर मांय डूबौ देवै। म्हैं चीसाळी मारणी
चावूं पण आबाज जाणै कंठां मांय अडग़ी। सुपनौ म्हनै लियां भाजै च्यारूमेर। अर म्हैं
देखूं बो जिकौ कदैई देख्यौ कोनी। अर इण ढाळै तौ दर ई कोनी देख्यौ। म्हनै लखावै
म्हारी आत्मा लोहीझांण।
००
(दोय)
म्हैं तौ बंधक हौ
बां रौ। बियां तौ ओ सुपनौ हौ। म्हैं बां रौ लारौ करियौ। कै जाण सकूं बो साच जिकौ
आखै जीवण सूं घणौ भारी। पाणी कमती हुवतौ अड़ाणै कठैई। उण खातर म्हैं न्हासूं कै बो
कित्तौ बचै का फेर बच जावैला पूरौ। पीढियां री हेमाणी लियां। म्हैं पूगूं अेक मा
री कूख मांय। बठै अेक भ्रूण है। खुद रै भार रै तिरेसठ प्रतिशत पानी मांय। उणी’ज सूं प्राण उण रा। म्हैं कियां ओळखूं कै बो उणी मात्रा
मांय है। अर बच जावैला जापतैसर। जे पाणी कमती हुयौ। तो बो कित्तौ बच्योड़ौ हुवैला
जद कै जूण पासी। म्हैं पूगूं अबै खुद री देही मांय। बठै उण नै हुवणौ चाइजौ
दोय-तिहाई का तीन-चौथाई। अर लोही रै प्लाजमा मांय च्यार प्रतिशत हुवणौ जरूरी है।
अर कोशिकावां मांय सोलह प्रतिशत। कांई इत्तौ पाणी सही-सही मात्रा मांय हुवैला।
अठीनै म्हैं केई बीमारियां सूं घिरगयौ हूं,
अबै सुपनै मांय
म्हैं हूं डागदर री टेबल पाखती। बो जांच करै अर परची मांय सावचेतियां लिखै। मोटै
आखरा मांय बो मांडै ‘शुद्ध पानी’ अर सेवन माथै जोर देवै आ जाणता थकां कै अबै फगत बच्यौ
प्रदूषित पाणी। बजार रै दावां नै गळै लटक्यां म्हैं भाजू शुद्ध पाणी खातर। अर कूड़
माथै अेतबार करू कै जिकौ साच दांई पुरसीजै। कै अबै इण मांय अकूत बौपार। बस शुद्ध
रो विज्ञापन है अशुद्ध। पाणी मांय बो हुसी,
ओ पतियारौ कोनी
हुवै अर डर सूं कांपण लागूं।
००
अनुसिरजक परिचै- राजस्थानी रा
कवि-आलोचक अर संपादक डॉ. नीरज दइया रो जलम 22 सितम्बर 1968 नैं रतनगढ़ (चूरू) में हुयौ। ‘निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध’ विषय माथै पीअेच.डी.। प्रकाशित अनुवाद : पंजाबी
काव्य-संग्रै / अमृता प्रीतम ‘कागद अर कैनवास’ (2000), हिंदी कहाणी-संग्रै / निर्मल वर्मा ‘कागला अर काळो पाणी’
(2002), चौबीस भारतीय भाषावां
रै कवियां री कवितावां रो राजस्थानी अनुवाद ‘सबद नाद’ (2012), गुजराती जातरा-वृत्तांत / भोलाभाई पटेल ‘देवां री घाटी’
(2013) अरमोहन आलोक रै
पुरस्कृत राजस्थानी कविता-संग्रै रो हिंदी अनुवाद ‘ग-गीत’ (2004)। केई मौलिक अर संपादित पोथ्यां प्रकाशित। आलोचना पोथी ‘बिना हासलपाई’ चर्चित। साहित्य अकादेमी, नवी दिल्ली सूं ‘जादू रो पेन’ माथै बरस 2014 रो ‘बाल साहित्य पुरस्कार’, राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति
अकादमी, बीकानेर सूं ‘बावजी चतुरसिंहजी अनुवाद पुरस्कार’ आद केई पुरस्कार, मान-सम्मान मिल्योड़ा।
ठिकाणौ : सी-107,
वल्लभ गर्डन, पवनपुरी, बीकानेर-334003
मोबाइल : 9461375668 ई मेल- neerajdaiya@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें